Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - तेईसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 ___ कठिन शब्दार्थ - भवतण्हा - भव तृष्णा, भीमा - भयंकर, भीमफलोदया - भयंकर फल देने वाली, तं - उसको, उद्धित्तु - उखाड़ कर। ___भावार्थ - हे महामुने! संसार में तृष्णा रूपी लता कही गई है। वह अत्यन्त भयंकर है तथा भयंकर फल देने वाली है उसको यथान्याय (जिनशासन की रीति के अनुसार) उच्छेदन कर के सुखपूर्वक विचरता हूँ।
विवेचन - भवतृष्णा रूपी लता के फल विषाक्त एवं दुःखदायक है। गौतमस्वामी ने इस तृष्णा लता को जड़-मूल से उखाड़ कर फेंक दिया है अतः वे सुखपूर्वक विचरण कर रहे हैं।
केशीश्वमण की छठी जिज्ञासा .. साहु गोयम! पण्णा ते, छिण्णो मे संसओ इमो। अण्णोऽवि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा॥४६॥
भावार्थ - हे गौतम! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह संशय भी दूर कर दिया है। अब मेरा एक अन्य भी संशय-प्रश्न है। हे गौतम! मुझे उसके विषय में भी कुछ कहें अर्थात् उस संशय का भी निवारण करें।
संपज्जलिया घोरा, अग्गी चिट्ठइ गोयमा!। जे डहंति सरीरत्था, कहं विज्झाविया तुमे?॥५०॥
कठिन शब्दार्थ - संपज्जलिया - प्रज्वलित, घोरा - घोर, अग्गी - अग्नि, डहंति - जलाती है, सरीरत्था - शरीर में स्थित होकर, विज्झाविया - बुझाया। . भावार्थ - छठा प्रश्न - हे गौतम! भयंकर जलती हुई एक अग्नि है जो शरीर में रह कर आत्मगुणों को जलाती है। आपने किस प्रकार उसे बुझाया है ?
गौतम स्वामी का समाधान महामेहप्पसूयाओ, गिज्झ वारि जलुत्तमं। सिंचामि सययं ते उ, सित्ता णो व डहंति मे॥५१॥
कठिन शब्दार्थ - महामेहप्पसूयाओ - महामेघ से प्रसूत, गिज्झ - लेकर, वारि - जल, जलुत्तमं - उत्तम जलों में, सिंचामि - सिंचित करता हूं, सययं - सतत, सित्ता - सिंचित की हुई।
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