Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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खलुंकिज्जं णामं सत्तावीसइमं अज्झयणं
खलुंकीय नामक सत्ताईसवां अध्ययन प्रस्तुत अध्ययन में दुष्ट-अविनीत बैल के दृष्टान्त के द्वारा अविनीत शिष्य की दुष्ट मानसिक वृत्तियों एवं आचार का मनोवैज्ञानिक दिग्दर्शन कराते हुए विनीत शिष्य के कर्तव्य का . बोध कराया गया है। इसकी पहली गाथा इस प्रकार है -
गर्गाचार्य का परिचय थेरे गणहरे गग्गे, मुणी आसी विसारए।। आइण्णे गणिभावम्मि, समाहिं पडिसंधए॥१॥
कठिन शब्दार्थ - थेरे - स्थविर, गणहरे - गणधारक-गच्छाचार्य, विसारए - विशारद, आइण्णे - गुणों से आकीर्ण-व्याप्त, गणिभावम्मि - गणि भाव में, समाहिं - समाधि को, पडिसंधए - पुनः जोड़ने वाले।
भावार्थ - स्थविर, गणधर अर्थात् गुणों के समूह को धारण करने वाले, विशारद-सभी शास्त्रों में कुशल आचार्य के गुणों से युक्त, टूटी हुई समाधि को फिर से प्राप्त करने वाले गर्ग गोत्रीय अतएव गर्गाचार्य नाम के एक मुनि थे।
विवेचन - गर्गाचार्य बड़े विद्वान् और समर्थ आचार्य थे। उनके बहुत से शिष्य थे, किन्तु वे सब अविनीत और स्वच्छन्दाचारी बन गये। उन अविनीत शिष्यों द्वारा अपने संयम में एवं भाव समाधि में, विघ्न पड़ते देख कर वे उन्हें छोड़ कर पृथक् हो गये और भाव-समाधि में लीन रहते हुए आत्मगुणों की वृद्धि करने लगे।
यहाँ पर स्वाभाविक रूप से यह प्रश्न हो सकता कि गर्गाचार्य के सब शिष्य अविनीत कैसे हो गये? __इसका उत्तर यह है कि अगला बड़ा शिष्य अविनीत हो तो पीछे आने वाले शिष्य उसको देख कर आगे से आगे अविनीत होते जाते हैं। जैसे की कहावत है - 'बिगड़ियो साधु बिगाडे टोली, सडियो पान सडावे चोली' अर्थात् पानों की चोली (टोकरी) में कोई एक पान सड गया हो तो वह सारी टोकरी के पानों को सडा देता है। पनवाडी (पान बेचने वाला) प्रातःकाल
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