Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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मोक्षमार्ग गति - ज्ञानादि की उपयोगिता
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सम्यक् तप का स्वरूप तवो य दुविहो वुत्तो, बाहिरन्भतरो तहा। बाहिरो छव्विहो वुत्तो, एवमन्भंतरो तवो॥३४॥
कठिन शब्दार्थ - तवो - तप, दुविहो - दो प्रकार का, वुत्तो - कहा गया है, बाहिरब्भंतरो - बाह्य और आभ्यंतर, बाहिरो - बाह्य, छव्विहो - छह प्रकार का, एवं - इसी प्रकार, अन्भंतरो - आभ्यन्तर।
भावार्थ - तप दो प्रकार का कहा गया है। बाह्य तप और आभ्यन्तर तप। बाह्य तप छह प्रकार का कहा गया हैं इसी प्रकार आभ्यन्तर तप भी छह प्रकार का कहा गया हैं।
विवेचन - मोक्ष का चतुर्थ साधन - तप अन्तरंग (आत्मा पर असर दिखाने वाला) एवं बहिरंग (सरीर पर प्रभाव दिखाने वाला) रूप से कर्म निर्जरा व आत्म विशुद्धि का कारण होने से मोक्ष का विशिष्ट साधन है। इसलिए इसे पृथक् मोक्षमार्ग के रूप में यहाँ स्थान दिया गया है। तप की भेद - प्रभेद सहित विस्तृत व्याख्या उत्तराध्ययन सूत्र के 'तपोमार्गगति' नामक तीसवें अध्ययन में दी गई है।
ज्ञानादि की उपयोगिता णाणेण जाणइ भावे, दंसणेण य सद्दहे। चरित्तेण णिगिण्हाइ, तवेण परिसुज्झइ॥३५॥
कठिन शब्दार्थ - णाणेण - ज्ञान से, जाणइ - जानता है, भावे - भावों-तत्त्वों को, दंसणेण - दर्शन से, सद्दहे - श्रद्धा करता है, चरित्तेण - चारित्र से, णिगिण्हाइ - निरोध करता है, तवेण - तप से, परिसुज्झइ - विशुद्धि करता है।
भावार्थ - आत्मा ज्ञान से पदार्थों को जानता है, दर्शन (सम्यक्त्व) से श्रद्धा करता है चारित्र. से आस्रव का निरोधरूप संवर करता है अर्थात् आते हुए कर्मों को रोकता है और तप से पूर्वकृत कर्मों का क्षय कर के शुद्ध होता है।
विवेचन - सम्यग्ज्ञान का कार्य वस्तु तत्त्व को जानना है, सम्यग्दर्शन का कार्य उस पर पूर्ण विश्वास करना है, चारित्र का कार्य आस्रवों से रहित करना है और तप का कार्य आत्मा से
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