Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
उत्तराध्ययन सूत्र - छब्बीसवाँ अध्ययन
जाता ही कैसे ? अतः तीसरे प्रहर में ही गोचरी करना यह एकान्त नियम नहीं है। किन्तु यह सामान्य नियम है।
११४
इस गाथा में आये हुए 'सज्झायं' शब्द से प्रमुख रूप से मूल आगम पाठों की परावर्तना समझनी चाहिए। इसीलिए ग्रंथों में प्रथम पौरिसी को 'सूत्रपौरुषी' कहा गया है। 'झाणं' शब्द से आगमों की वाचना, अनुप्रेक्षा आदि समझना चाहिए। ग्रंथों में द्वितीय पौरिसी को 'अर्धपौरुषी' कहा गया है।
आसाढे मासे दुपया, पोसे मासे चउप्पया ।
चित्तासोएसु मासेसु, तिप्पया हवइ पोरिसी ॥ १३ ॥
कठिन शब्दार्थ - आसाढे - आषाढ, मासे - मास में, दुपया - दो पैर की, पोसे - पौष, चउप्पया चार पैर की, चित्तासोएसु चैत्र और आसोज में, तिप्पया - तीन पैर की । भावार्थ - आषाढ़ मास में दो पाँव जितनी, पौष मास में चार पाँव तथा चैत्र और आसोज मासों में तीन पाँव की पोरिसी होती है।
पौरिसी का कालमान
-
अंगुलं सत्तरत्तेणं, पक्खेणं च दुरंगुलं ।
वढए हायए वावि, मासेणं चउरंगुलं ॥ १४ ॥
कठिन शब्दार्थ - अंगुलं - अंगुल, सत्तरत्तेणं - सात अहोरात्र में, पक्खेणं - पक्ष में, दुरंगुलं- दो अंगुल, वट्टए बढ़ती है, हायए घटती है, चउरंगुलं चार अंगुल ।
-
भावार्थ - ऊपर की गाथा में चार महीनों में पोरिसी का परिमाण बताया गया है। शेष आठ महीनों का परिमाण बतलाया जाता है- प्रत्येक सात दिन-रात में एक-एक अंगुल और पक्ष (पन्द्रह दिनों) में दो-दो अंगुल और प्रत्येक मास में चार-चार अंगुल छाया बढ़ती और घटती है।
Jain Education International
-
-
1
विवेचन - पुरुष शरीर से जिस काल को नापा जाता है, उसे पौरुषी (पोरिसी) कहते हैं। बारह अंगुल की छाया को एक पाद (पैर) कहते हैं। पुरुष अपना दाहिना कान सूर्य मण्डल के सम्मुख रख कर खड़ा हो और घुटने के बीच तर्जनी अंगुली रखकर उस अंगुली की छाया को देखें। यदि वह आषाढ़ी पूर्णिमा को दो पैर परिमाण यानी २४ अंगुल हो जाय तो एक प्रहर प्रमाण दिन हो जाता है।
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org