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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
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विनाश किया । इस से त्राहीत हो कर तीसरे दिन चेड़ा राजाने श्रावक धर्म में दृढ़, निरन्तर छट्ठ तप के करनेवाले और महापराक्रमी नाग सारथी के पुत्र वरुण नामक अपने सेनापति को कहा कि " हे वीर ! आज तो तू सचेत हो कर युद्ध कर । स्वामी की आज्ञा स्वीकार कर वरुण सेनापति कूणिक के सैन्य के साथ लडाई में जुज गया । भवितव्यतावश कूणिक के सैनापतिने वरुण को बाण द्वारा मर्मस्थान में वेधित किया जिस से वरुणने अपने रथ को दो तीन पग पीछे की ओर हटा कर तीव्र बाण द्वारा उस सेनापति को मार गिराया । फिर शीघ्र ही वह वरुण युद्ध भूमि से निकल दूर जा कर, दर्भ का संथारा बना उस पर बैठ कर, आलोचना प्रतिक्रमण कर, समाधिपूर्वक मृत्यु प्राप्त कर अरुणाभ नामक विमान में चार पल्योपम के आयुष्यवाला देव हुआ। वहां से चव कर वह वरुण का जीव महाविदेह
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में उत्पन्न हो कर मोक्षपद को प्राप्त करेगा । ( वरुण का सविस्तर चरित्र श्रीभगवती सूत्र से जाना जा सकता है )
वरुण के जाने पर चेटक राजाने कूणिक पर बाण फेंका परन्तु कूणिक के शरीर पर इन्द्रने वज्र का कवच रखा था इससे वह बाण उससे टकरा कर भूमि पर गिर पड़ा । चेड़ाराजा की एक ही बाण फेंकने की प्रतिज्ञा होने से उसने फिर दूसरा बाण नहीं छोड़ा। दूसरे दिन फिर उसने बाण फेंका तो वह भी निष्फल गया । इससे चेड़ा