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॥ तृतीयः स्तंभः॥
व्याख्यान ३१ वां पांचवा तपस्वी प्रभावक के विषय में विविधाभिस्तपस्याभिजैनधर्मप्रकाशकः । विज्ञेयः पञ्चमो भव्यैः, स तपस्वी प्रभावकः ॥१॥
अर्थः-विविध प्रकार की तपस्याओंद्वारा जैनधर्म के प्रकाश करनेवाले तपस्वी को भव्य प्राणी पांचवा प्रभावक कहते हैं । इस प्रसंग पर निम्नलिखित काष्ठमुनि का दृष्टान्त प्रसिद्ध है
___ काष्ठमुनि का दृष्टान्त राजगृह नगरी में काष्ठ नामक एक श्रेष्ठी रहेता था जिस के वजा नामक एक कुलटा स्त्री थी। उस स्त्री से उत्पन्न हुआ देवप्रिय नामक उसके एक पुत्र था। वह पाठशाला में अभ्यास करता था। उस श्रेष्ठी के घर में पुत्र के सदृश