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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
मित्र को साथ ले एक जहाज पर सवार होकर जब समुद्र । के उस भाग में गया तो उसने भी दूर से उसी प्रकार क्रीड़ा करती हुई स्त्री देखी परन्तु कुमार ज्योहिं उसके समीप पहुंचा कि-वह स्त्री प्रथम के अनुसार समुद्र में गिर कर अदृश हो गई। यह देख कर उस साहसिक राजकुमारने हाथ में नंगी तलवार लेकर उसके पीछे समुद्र में कूद पड़ा जिससे वह राजकुमार जलकांत मणि से बने हुए सप्तखंडी प्रासाद पर जा गिरा । फिर धीरे धीरे नीचे उतर कर कुमार नीचे के खंड में पहुंचा। वहां उसने कल्पवृक्ष की शाखा से बंधे हुए पर्यंक पर एक अत्यन्त सुन्दर स्त्री को सूक्ष्म वस्त्र से सम्पूर्ण शरीर को ढाके हुए सोती हुई देखी। उसने उस वस्त्र को थोड़ासा हटाया कि-उस स्त्रीने तुरन्त ही खड़ी होकर उस कुमार को उसी पलंग पर बैठाया और उससे उसका कुल-नाम आदि का हाल पूछा । कुमारने उसका यथोचित उत्तर देकर जब उसने भी उसका वृत्तान्त पूछा तो वह अपना यथास्थित स्वरूप बतलाने लगी कि
वैताढ्य पर्वत की दक्षिण श्रेणी में विद्युत्प्रभ नामक राजा है जिसकी मैं मणिमंजरी नामक पुत्री हूँ। एक बार मेरे पिताने मुझे योग्य वय में आई हुई जान कर किसी नैमित्तिक से पूछा कि-"मेरी पुत्र के योग्य वर कब मिलेगा?" इस के उत्तर में उसने कहा कि-" हे राजा ! समुद्र में जल