________________
व्याख्यान ३२ :
: २९१ :
करनेवाले रागादिक का क्षय हो गया है, ऐसे ब्रह्मा, विष्णु, शिव या जिन जो हों उनको मेरा नमस्कार हो । जो उस समय जो उस प्रकार, जो उस नाम से जो है वह तू ही है। सर्व दोष और पाप रहित जो कोई हो तो तू एक ही है, अतः हे भगवान् ! आप को नमस्कार हो!
इस स्तुति से आश्चर्यचकित हो राजाने सूरि से पूछा कि-हे पूज्य ! मतमतान्तर का आग्रह त्याग कर मुझे सचा तत्व बतलाइये । मूरिने उत्तर दिया कि-हे राजा ! शास्त्र के संवाद को जाने दिजीये। यह शिवजी ही तुझे जो तत्त्व बतलाये तो उसीको सत्य समझ स्वीकार करना। मध्य रात्रि को शिवजीने सूरि के ध्यान से प्रत्यक्ष हो राजा से कहा किहे राजा! श्री तीर्थंकरद्वारा प्ररूपित स्याद्वाद तत्व का आच. रण करने मात्र से ही तुझे इच्छित फल की प्राप्ति हो सकेगी। यह सुन कर राजाने समकित धारण किया ।
एक बार वायुस्थंभन क्रिया अर्थात् शरीर में चलनेवाली वायु को रोक कर शरीर को हलका बनाने की क्रिया में निपुण कोई देवबोधि नामक ब्राह्मण कमलनाल के दंड बना, कैल के पत्तों का आसन (शिबिका-पालकी) बना, कच्चे सुत के धागों से उन दंडों तथा पत्तों को बांध कर उस शिविका को छोटे छोटे शिष्यों के कंधों पर रख स्वयं उस में बैठ कर राजसभा में गया। राजाने उसे देख आश्चर्य