Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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मिलिया त्यां भेळा, रह्या किती निशि धारो । गांमादिक बाहिर, पूछा कीजै सारी वस्त्र पात्र रोगान पत्रादिक, संत सत्यां नै सारी । दधो लीधो सर्व हकीगत, पूछ करै समणी
निरधारी ॥
गणि आणा विण
पासे, पात्र रंगावे धारी ।
वस्त्र सिंवावै
सु
तिवारी ॥
दंड दीजे, उभय भणीं विहार करी ने, जे ग्रामादी मझारी ।
वलि पूछे थे
उसण आहार' आथण २ रा ल्याया,
कै नही ल्याया धारी ॥ तुम्हे गया किणवारी ।
मजल करी धारी ॥
आवै
सारी ।
दंड दीजै
भारी ॥
ज्यां
खेत्रां री ।
हरष मनवारी ॥ सती सुखकारी ।
गणि बांचण
मेलै, संत त्यांनै, सहु गणि नामे धारी ॥ तिण नै, तसु धणियाप निवारी | जो मांगे, सूंपै विनीत तिवारी ॥ ह्वै बेराजी, तह मती
अज्जा,
पोथ्यां
मुनि, मांग्यां सेती
बधारी ।
बुध सूं खोड़
मेट तसु
खेत्रज, देख
भळावै
धारी ॥
नीत
उदारी ।
आज्ञा सासण ऊपर दृष्टज, अनुकूल प्रकृति देखी
अनुसारी ॥
तिवारी |
खेत्र भळावै, खळ गुळ न ही इकसारी ॥ विगय तणों ओखध कीधो, तेहथी दुगुण दिन धारी । एक सप्पी' उपरंत न लेणी, विगय लिखत तंतू जाचै तास नाम लिख, गणि नै कहै ते पिण पूछी लिख्यो वांचजे, १. गर्म आहार सं० २०१६ तक सायंकाल के समय सामूहिक रूप से गोचरी नहीं होती थी। अतः लम्बे विहार में पहुंचने में विलंब हो जाने से भोजन आदि पर्याप्त नहीं मिल
आलस
अंग
निवारी
पाने की स्थिति में गर्म आहार लिया जा सकता
था ।
२. सायंकाल
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मुनि अज्जा विषे
गांम
उसण ल्याया तो तेह
ग्राम में, वा पाछै, किती
दोढ पोहर
चढियां
विहार करी गोचरी
रा
सुखे आण साध साधवी करै
तणीं जे, वेळां उसण मंगावै, तसु चउमासो, पृच्छा
विगयादिक नो दायक कुण-कुण, अधिक सेखेकाळ चउमासो तसुधणियाप
न करणी पोथ्यां दै
३. किसी समय
४. स्वस्थ अवस्था में
५. भावना भानें वाला
६. स्वामित्व
७. त्रुटि
८. घृत
९. वस्त्र
गणपति- सिखावण: ५९