Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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ढाळ ३
'अहो मुज गुणवंत पूज्यजी, मुनिंद मोरा। धन्य-धन्य भिक्षु स्वाम हो ॥ध्रुपदं॥ संवत् अठारे बत्तीस में, मुनिंद मोरा, बांधी मर्यादा ताम हो। शिष्य शिष्यणी करणा सही, मु० भारीमाल ने नाम हो। गुणसठे दृढ़ बांधी बळि, भारीमाल ने नाम। शिष्य शिष्यणी करणा सही, दीक्षा दे सूंपणा ताम॥ भारीमाल री आण थी, बलि करणो चउमास। शेषकाळ पिण विचरणो, . आज्ञा ले गुण रास॥ इण वचने करी जाण जो, उतरियां चउमास ।
आज्ञा लेइ . ने विचरणो, शेषकाळ विमास॥ ___ अथवा चउमासो धारे तरे, चउमासा पहिला शेषकाळ।
वा चउमासा पछै शेषकाळ नीं, गणि आज्ञा ले विचरे विशाल॥ __ भारीमाल इच्छा थकी, पद युवराज पिछाण ।
गुरु भाई शिष्य ने दियां, रहिवो तेहनी आण। सर्व साधु ने साधवी, इक गणि आणा मांहि ।
रहिवो रूडी रीत सूं, ए रीत परंपर ताहि॥ ८ संत अने सतियां । तणो, चाले मार्ग जाण।
त्यां लग ए मर्याद है, इक गणी आण प्रमाण॥ कोइक कर्म योग गण थी टळे, एक दोय तीन आदि। करे धुरताई बुगल ध्यानी हुवे, श्रद्धणो नहीं तसु साध। च्यार तीर्थ में गिणवो नही, निंदक तीर्थ नो धार ।
एहवा ने बांदे तिके, छै जिन आज्ञा बार ।। ११ और मुनि ने असाधु श्रद्धायवा, कदा फेर दीक्षा लेवे कोय।
तो पिण उण ने साधु न श्रद्धणो, ए भिक्षु वच जोय।। १२ उण ने छेड़वियां ओ आळ दे, तिणरी बात न मानणी एक।
उण तो अनंत संसार आरे कीयो, दीसे छे सुविशेष।।
१. लय-सिंहल नृप कहै चंद ने।
मर्यादा मोच्छबरी ढाळां : ढा० ३ : १६९