Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नहीं। आचार री संका पड़यां थी बांधे, बलै कोइ याद आवै ते लिखां, ते पिण सर्व कबूल छै। ए मर्यादा लोपण रा अनंता सिद्धां री साख कर नै पचखांण छै। जिण रा परिणाम चोखा हुवै, सूंस पाळण रा परिणाम हुवै, ते आरै होयज्यो। सरमासरमी रो काम छै नहीं। संवत् १८५० रा लिखत में बात कही। इम इत्यादिक मर्यादा अनेकअनेक बंधवस्ती में रहै हरष सहित अंगी करे अनेक-अनेक त्याग सिद्धां री साख पंच पंदा री साख सुं च्यार तीर्थ री साख सूं अन्य मती देख्या पिण ते सर्व सोगन लाज छोड़ नै भांग देवे। पछै आप मते फिरे अनेक-अनेक परूपणां करै घुनराइ करै। तथा लोक देखाउ करणी पिण करै। पिण टाळोकर री सनंध न्ही लेखवणी इसी श्री भीखणजी स्वामी कही ते ढाळ कहै छै१ घर छोड़ी ली गुर कनै दिख्या, केइ दुःखदाइ हुवै चेला।
गुर नै उथापे हुवा छै अग्यांनी, गण सूं पड़िया फिरै अकेला॥ ए टोळा रा अवगुण बोले टालोकर, तिके प्रतक्ष साधां रा धेषी रे। जो किण रा मन मांहे संका हुवै तो, अरूबरू ल्यो देखी॥धुपदं। साधपणो कहै म्हेइज पाळां, ते हिया तणे बल बोले।
कर्मा रे वस क्यूं ही न सूजे, ए मोह मिथ्यात में डोले। ३ सांग साधू रो पिण अकल न काइ, सीख दिया करै कजिया।
रात दिवस करै छै निंद्या पूरी, बलै छोड़ी लोकां री लजिया। ४ अनेक साधां री करै छै निंद्या, पोते होय बेठा बाजे वैरागी।
ते अपछंदा जिण आग्या बारै, ज्यांसूं मुगत पुरी रही आधी॥ ५ जो सीत काळ रहै सदा उघाड़ा, बले लूखी खावै रोटी।
पिण नंद्या न छूटी सुद्ध साधा री, तिके भेष लेइ हुवा खोटी॥ मास-मास करै पारणो कोयक, बलै सहै सूरज रो तापो। तो पिण गरज सरै नही काइ, तिण खोयो नंद्या कर आपो।। छिद्रगवेषी नै दुष्ट परिणामी, तिण वरत किया नव कोटि। झूठ बोलण री पिण संक न राखै, तिण रे भोळप मोटी। क्रोध मांहे सदाइ रहै कळिया, मांन मांहे नहीं मावै। आप री कीरत आप कहै मूरख, पड्या लोकां में पमावै ।। देवाळिया नै देवाळिया सूजे, साहूकारां नै उड़ावै।
ते बिगड़ायल भेष रा भारीकर्मा, सुद्ध साधां रो सुजश गमावै॥ १० आप ने अणहुँतो उतकष्टो थापै, बलै उतमा नै खोला।
साध साधवियां नै निजरा दीठां, त्यांरा बळे आंख्यां रा डोला। १. चतुर विचार करी ने देखो। ३०६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था