Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भरत क्षेत्रे भिक्षु
पट तीजे
ढाळ १
१. लय-चरखा नीं
'वारी रे जावूं म्हारा गणपति नी ।।
फूल क्यारी शासण गणि संपति नी, स्वामी शासण कलश चढायो, वारी० ॥ ध्रुपदं ॥ परगटिया, भारीमाल शिष्य भारी ।
सुयश
ऋषिराय जंबू सा,
मर्यादा बांधी भिक्षु,
देणी, वर्ष
पच्चासे
विविध गणपति नामे दीक्षा दोष देखै तो तुरत दाखणों, लिखत घणां दिवस पाछै दोष कहै तो, धणी- दोष रो इमहिज लिखत बावनां मांहि, इमहिज रास 'साध-सिखामण-ढाळ' दुहा में, इमहिज बहु अधिकारो || लिखत बावनें दाख्यौ अज्जा, जाणी दोष लगावै ।
तो पानां में लिखी राखणौ, इम भिक्षु फरमावै ॥
विण लिखै विगै तरकारी न खाणी, कदा कारण में न लिखायो । तो और अज्जा ने सायदार करणा, वेगो लिखणो तायो । साधु ने आर्या न सु 'स्वामभणी कहिजो' - इम कहिणो, लिखत बावने
केरी,
अवर्णवादो।
दोष धणी ने तथा गुरां ने, कहिणो इण विध अवर किणहि ने कहिणो नाही, पच्चासे बावनें गण बाहिर नीकळ नै पोथी, पाना ले जावणां अंश अवगुण बोलण रा त्याग छै, गुणसठै गण में वा बाहिर निकळ नैं, अवगुण लिखत पैंतालीसा में भाख्यो, बलि जिलो न उगणीसै पनरे सुदि एकम, माघ मास रे मांह्यो । गणपति जोड़ करी ए, स्वाम वचन सुखदायो ।
बोलण रा त्यागो ।
बांधणौ धर रागो ||
जयजश
दिशा जयकारी ॥
लिखत मझारो ।
बत्तीशे सारो ||
एही ।
तेही ॥
मझारो ।
लाधो ॥
आख्यो ।
आख्यो ॥
नहीं साथो ।
पच्चासे ख्यातो ॥
मर्यादा मोच्छब री ढाळां : दा० १
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