Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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"भवियण जोवो रे हृदय विचारी, म करो तांण हियारी रे भ०।
तांण कीधा सूं घणी खुबारी ॥ध्रुपदं॥ कोइ कहै किवाड़ियो कितोएक मोटो, तिण रो सूतर' में नहिं उनमान। इणरो उनमान तो जीत ववहार सेती, थाप करसी बुद्धिवान रे॥ हाथ सवा रे आसरै लांबो ने पेहलो', एहवो बांध्यो उनमान। इण बातरो निश्चो केवळी जाणे, उनमान सूं जाणे बुधवान। ज्यूं साध साधवी रे पछोवरी६ रो, पेहली तीन हाथ उनमान । पिण लांबी रो निकाळ' तो नही सूतर में, पांच हाथ थापी बुधवान।। ज्यूं किवाड़िया लांबा ने पेहला री, आ पिण थाप करी छै ताम। ते निश्चो तो केवळज्ञानी जाणै, तिण री खांच तणों नहीं काम।। (आचार्य भिक्षु कृत किवाड़िया री ढाळ) (गा. २१ से २४) तथासूतर मांही तो मूळ न बरज्यो, पंरपरा में पिण बरज्यो नाही। तिण सूं जीत ववहार निर्दोष थाप्यां री, संका म करो मन मांहि॥ जो कवाड़िया री संका पड़े तो, संका छै ठांम-ठांम। ते कहि कहि ने कितराएक केहूं, संका रा ठिकाणा तांम ।। साधुतो हिंसा रा ठिकाणा टाळे, छद्मस्थ तणे ववहार। सुध ववहार चालतां जीव मर जाये तो, विराधक नहीं छै लिगार ॥ जिण-जिण बोलां रो निकाळो नहीं छै, ते केवळियां ने भळावो। कवाड़ियां री ताण करे ने, मत कोइ झूठ लगावो।। मोनै तो कवाड़िया रो दोष न भासे, जाणे ने सुध ववहार। जो निशंक दोष कवाड़िया में जाणो, तो मत वहरजो लिगार।। किवाड़िया रो दोष कहै तिण ऊपर, जोड कीधी पादू मझार। संवत अठारह ने वर्ष चोपने, बैसाख विद दसम मंगलवार॥
(गा. ४७ से ५२) इहां भीखणजी स्वामी आपणा ववहार में जीत ववहार थापे तिण में दोष न कह्यो। सुध ववहारे चालतां जीव मर जावै तो पिण विराधक नहीं, तिम सुध ववहार जाण ने थाप्यो तिण में
१. लय-रे भवियण सेवो रे साधु सयाणा २. सूत्र-आगम ६. चद्दर ३. परिमाण ७. निर्णय ४. स्थापना ८. स्थान ५. चौड़ा ९. निर्णय
३३२ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था