Book Title: Tattvagyan Vivechika Part 01
Author(s): Kalpana Jain
Publisher: Shantyasha Prakashan

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Page 6
________________ पाठ 1 | सीमंधर पूजन २ प्रश्न 1: श्री सीमंधर भगवान के संबंध में आप क्या जानते हैं ? उतरः अनंतानंत प्रदेशी आकाश के मध्य स्थित असंख्यात प्रदेशी तीन लोक के ठीक बीचोंबीच त्रसनाड़ी संबंधी मध्यलोक के ढाई द्वीप में सुदर्शन, विजय, अचल, मंदर और विद्युन्माली नामक पाँच मेरु पर्वत हैं । इन पाँचों मेरु संबंधी पूर्व, पश्चिम विस्तृत कर्मभूमिओं का क्षेत्र महाविदेह कहलाता है। इन पाँच महाविदेह क्षेत्रों में सतत दुखमा-सुखमा काल की व्यवस्था विद्यमान होने के कारण यहाँ से अनेकों जीव सतत मोक्षदशा प्राप्त करते रहते हैं। यहाँ प्रत्येक महाविदेह संबंधी चार – इसप्रकार पाँच महाविदेह संबंधी कम से कम बीस तीर्थंकर सतत विद्यमान रहते हैं। ये एक साथ अधिक से अधिक एक सौ साठ भी हो सकते हैं। इस जंबूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में सीता नदी के उत्तरवर्ती अन्तिम आठवें पुष्कलावती विदेह में श्री सीमंधर नामक शाश्वत तीर्थंकर विद्यमान हैं । यहाँ इस नामवाले पूर्व तीर्थंकर का निर्वाण हो जाने पर पुनः इसी नामवाले दूसरे तीर्थंकर समवसरण सहित विहार करने लगते हैं; अर्थात् जंबूद्वीप का प्रस्तुत विदेह क्षेत्र इन श्री सीमंधर भगवान के विहार से कभी भी वंचित नहीं रहता है। प्राप्त प्रमाणों के आधार से यह सर्व विदित है कि वर्तमान में वहाँ विद्यमान श्री सीमंधर भगवान के दर्शन का लाभ इस भरत क्षेत्र के अध्यात्म-प्रतिष्ठापक, द्वितीय श्रुतस्कंध के प्रणेता दिग्गज आचार्य श्री कुंदकुंददेव को मिला था। वे दक्षिण भारत में स्थित पौन्नूर हिल से पूर्व विदेह क्षेत्र में स्थित श्री सीमंधर भगवान के दर्शन करने गए थे। वहाँ उन्होंने निराहार रहकर सात दिन पर्यंत भगवान की दिव्यध्वनि का भरपूर लाभ लिया था। दिव्यध्वनि काल के अतिरिक्त काल में, वहाँ उपस्थित तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग एक /1

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