Book Title: Shukl Jain Mahabharat 01 Author(s): Shuklchand Maharaj Publisher: Kashiram Smruti Granthmala Delhi View full book textPage 6
________________ प्रकाशकीय निवेदन -० + : साहित्य भी जीवन-निर्माण के साधनो मे से एक मुख्य साधन है । यह वर्तमान भूत और भविष्यत् त्रिकाल का द्रष्टा तथा परिचायक है। इसके अभाव मे वैयक्तिक, सामाजिक तथा धार्मिक नियमो का प्रचार तथा प्रसार नही हो सकता। क्योकि मानवसिद्धान्तो तथा मनोगत विचारो को दूसरे तक पहुचाने के दो ही साधन है-वक्तृत्व और लेखन । वक्तृत्व से प्रचार सीमित तथा अस्थायी रहता है । अत उन्ही विचारो को जब आलेखित कर दिया जाता है तो जन जन तक पहुच जाते है । फिर वर्तमान युगीन मानव की आशाये तथा आवश्यकताये इतनी बढ़ चुकी है कि उसके भरसक प्रयत्न करने पर भी पूर्ण नही हो पाती जिस से वह सदा प्रशान्त बना रहता है । अत अपने अशान्त एव निराश मन को शान्त करने के लिए नाना प्रकार के मनोरजक कार्यो का आयोजन करता है । वे मनोरजक कार्य उसके मन को स्थायी शान्ति दिला सके या न दिला सके किन्तु साहित्य तो उसके निराश एव अशान्त मन को आशा तथा सतोष के स्थायी भाव प्रदान करता है। अधिक तो क्या मानव से महामानव बन जाने को अन्तर मे प्रेरणा तथा स्फूर्ति का जागरण करता है। क्योकि साहित्य जीवन का जीता जागता प्रतीक है। ___ मन्त्री श्री जी का प्रस्तुत ग्रन्थ भी एक जीवनोपयोगी साधन बनेगा। यह एक ऐतिहासिक ग्रन्थ है जिसमे आज से लगभग चौरासी हजार वर्ष पूर्व के भारत की स्थिति, कार्यकलाप तथा जीवन के प्रति दृढ विश्वास आदि का दिग्दर्शन कराता है । साथ-साथ उस समय केPage Navigation
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