Book Title: Shukl Jain Mahabharat 01
Author(s): Shuklchand Maharaj
Publisher: Kashiram Smruti Granthmala Delhi

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Page 11
________________ शुक्ल जैन महाभारत पर एक दृष्टिकोण भारत की संस्कृति का इतिहास महाभारत मे अकित किया गया है । जातीय सस्कारो का अभिव्यजन और भारतीयो के जीवन सम्बन्धी धारणाओ का निदर्शन जिस रूप मे हमे महाभारत मे उपलब्ध है वैसा इलियट महाकाव्य में भी ग्रीस का परिचय नही मिल सकेगा। रामायण, महाभारत और पुराण ऐसे महाग्रन्थ है जो आर्यावर्त मे रहनेवाली जनसमाज के रहन सहन, शिष्टाचार, सभ्यता, सस्कृति तथा धार्मिक, दार्शनिक और सामाजिक सिद्धान्तो, मान्यताप्रो और कल्पनाश्रो का साक्षात् प्रतिबिम्ब सा झलका देते है। निश्चित है भारतवर्ष में प्रारभ से ही एक जाति; अथवा एक विचारधारा का ही आस्तित्व नही रहा। आर्य अनार्य, असुर सुर, आग्नेय द्राविड, सैन्धव तथा व्रात्य यहां अगणित वर्षों से रहते आये है । भारत देश अनेक जातियो और विचारधारापो का सामाजिक रूप है। वेद काल से याज्ञिक और यज्ञ विरोधी व्रात्य सम्प्रदाये भारत वर्ष मे स्थित थी, इसका प्रमाण आपको ऋग्वेद मे प्राप्त हो सकता है । जैन धर्म भारत के प्राचीनतम धर्मो मे एक है । जैनधर्म के मूलभूत सिद्धान्तो का उल्लेख ऋग्वेद और अथर्ववेद मे देखा जा सकता है । अथर्ववेद का १५ वा काण्ड, व्रात्यस्तोम, के २२० मत्रो मे व्रात्य साधु का ही परिचय दिया गया हैं। "व्रात्य व्रत के मानने वाले को कहते है । अहिसा सत्य आदि पांचव्रतो को जो धर्म के रूप में स्वीकार करते हैं वे व्रात्य कहलाते है। वैदिक धर्म मे व्रत तो माने गये किन्तु कृच्छचन्द्रायणादि व्रतो को ही व्रत को सज्ञा दी गई है। जाबालोपनिषद् मे भी श्री दत्तात्रय ने सकृति मुनि को उपदेश देते हुए व्रत केविषय मे व्याख्या करते हुए बताया है कि चान्द्रायण पौर्णमासी आदि व्रत ब्राह्मण

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