Book Title: Shukl Jain Mahabharat 01 Author(s): Shuklchand Maharaj Publisher: Kashiram Smruti Granthmala Delhi View full book textPage 9
________________ धन्यवाद प्रदर्शन मानव सामाजिक प्राणी है, समाज की प्रत्येक गतिविधि के साथ इसका सम्बन्ध अवश्य रहा है । वैसे तो सामाजिक उन्नति का दायित्व उसके कणधारों पर ही आधारित है वे जिधर चाहे उसे मोड़ ले जाये । किन्तु गहराई में जाने से मालूम होता है कि उसका उत्थान तथा पतन प्रत्येक उसके सदस्य पर निर्भर है। क्योंकि ये व्यक्ति जितने २ अश में विद्वान् गुणवान् और चरित्रवान होंगे उतना ही उनका समाज उन्नति की ओर अग्रसर होगा अर्थात समाजके सदस्यों की उन्नति सम्गजकी उन्नति और सदस्यों की अवनति समाज की अवनति है । अत प्रत्येक सदस्य का कर्तव्य है कि वह अपने दायित्व का यथाशक्य पालन करता हुआ उनके साधनों को सुदृढ़, सुविस्तृत करता रहे । समाजोन्नति में आधार भूत पांच तत्व हैं। उन तत्त्वों में से जब किसी एक तत्त्व की कमी हो जाती है तो सामाजिक व्यवस्था अस्त व्यस्त हो जाती है । वे हैं-शिक्षा की प्रचुरता सत्साहित्य, सख्या, __ और द्रव्य । ये तत्त्व एक दूसरे के सहयोगी हैं। किन्तु इनमें सत्साहित्य ओर द्रव्य मुख्य हैं । साहित्य के अभाव में मनुष्य अपने सिद्धात से सर्वथा अनभिज्ञ रहता है । और आज का युग लक्ष्मी प्रधान युग है अतः बिना द्रव्य के सारी उन्नतिया कुण्ठित हो जाती हैं, फिर साहित्य प्रकाशन के लिए तो द्रव्य की अत्यन्त आवश्यकता है अत साहित्य वृद्धि की पुनीत भावना को लेकर "जैन महाभारत" जैसे विशाल काय ग्रन्थ के प्रकाशनार्थ निम्नलिखित धर्म प्रेमी सज्जनों ने द्रव्य व्यय की उदारता की है१. सर्व श्री स्नेहीराम रामनारायण जी जैन, नया बाजार दिल्ली २ धर्मचन्द जी जैन (निरपड़ा वाले) , ,, , ३ ला० लद्धशाह लोकनाथ जैन (लाहौर वाले) सदर थाना रोड़, ४. श्री अमरचन्द विलायती राम जैन (साढौरा वाले) बस्ती हरफूलसिंह ५ श्री बौद्धराज जी जैन (रावलपिंडी) सदर बाजार ६ ला० भीमेशाह , ७. श्री लालचद् शुक्लकुमार कमला नगर ८. जैन विरादरी (,)Page Navigation
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