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पत्र ५७०, ५७१, ५७२] विविध पत्र आदि संग्रह-२९वाँ वर्ष
४७७ :..आत्माके समझनेके लिए शास उपकारी हैं, और वे भी स्वच्छंद रहित पुरुषोंको ही हैंइतना लक्ष रखकर यदि सत्शास्त्रका विचार किया जाय तो वह शास्त्रीय अभिनिवेश गिने जाने योग्य नहीं है। संक्षेपसे ही लिखा है।
५७० मोहमयी क्षेत्रसंबंधी उपाधिका परित्याग करनेके अभी आठ महीने और दस दिन बाकी हैं, और उसका परित्याग होना संभव है।
दूसरे क्षेत्रमें उपाधि (व्यापार ) करनेके अभिप्रायसे मोहमयी क्षेत्रकी उपाधिके त्याग करनेका विचार रहा करता है, यह बात नहीं है।
परन्तु जबतक सर्वसंग-परित्यागरूप योगका निरावरण न हो, तबतक जो गृहाश्रम रहे, उस गृहाश्रममें काल व्यतीत करनेके विषयमें विचार करना चाहिये; क्षेत्रका विचार करना चाहिये; जिस व्यवहारमें रहना है, उस व्यवहारका विचार करना चाहिये । क्योंकि पूर्वापर अविरोध भाव न हो तो रहना कठिन है।
स्थापना.मुख.ब्रह्मग्रहण. ध्यान. योगबल. स्वायु-स्थिति.
५७१ ब्रह्म. ध्यान. योगबल. निग्रंथ आदि सम्प्रदाय. निरूपण. भू. स्थापना. मुख. सर्वदर्शन अविरोध.
आत्मबल.
५७२
आहारका जय. निद्राका जय. आसनका जय. वाक्संयम.
जिनोपदिष्ट आत्मध्यान. .. जिनोपदिष्ट आत्मध्यान किस तरह हो सकता है ! .. . जिनोपदिष्ट ज्ञानके अनुसार ध्यान हो सकता है, इसलिये ज्ञानका तारतम्य चाहिये। क्या विचार करते हुए, क्या मानते हुए, क्या दशा रहते हुए चौथा गुणस्थानक कहा जाता है किसके द्वारा चौथे गुणस्थानकसे तेरहवें गुणस्थानमें आते हैं ! ... ... .