________________
पत्र ८६१, ८६२] विविध पत्र आदि संग्रह-३३वाँ वर्ष
७७१ योग्य है । ज्ञानीके मार्गकी प्रतीतिमें जिससे निःसंशयभाव प्राप्त हो, और उत्तम गुणवत, नियम शील
और देव गुरु धर्मकी भक्तिमें वीर्य परम उल्लासित होकर वर्तन करे, ऐसी सुदृढ़ता करनी योग्य है, और वही परम मंगलकारी है।
३. जहाँ स्थिति करो वहाँ अपना ऐसा वर्तन रखना कि जिससे समागमवासियोंको ज्ञानीके मार्गकी प्रतीति सुदृढ़ हो, और वे अप्रमत्तभावसे सुशीलकी वृद्धि करें । ॐ शान्तिः.
८६१ मोरबी, श्रावण वदी १०, १९५६ ॐ. आज योगशास्त्र प्रन्थको डाकसे भेजा दिया है।
मुमुक्षुओंके अध्ययन और श्रवण मननके लिये श्रावण वदी ११ से भाद्रपद सुदी १५ तक सुव्रत, नियम और और निवृत्ति-परायणताके हेतुसे इस ग्रन्थका उपयोग करना चाहिये ।।
. प्रमत्तभावसे इस जीवका बुरा करनेमें कोई न्यूनता नहीं रक्खी, तथापि इस जीवको निजहितका उपयोग नहीं, यही खेदकारक है।
__ हे आर्य | हालमें उस अप्रमत्तभावको उल्लासित वीर्यसे मंद करके सुशीलसहित सश्रुतका अध्ययन कर निवृत्तिसे आत्मभावका पोषण करना ।
८६२ मोरबी, श्रावण वदी १०, १९५६
श्रीपयूषण-आराधन १. एकांत योगस्थलमें.
प्रभातमें-(१) देव गुरुकी उत्कष्ट भक्तिवृत्तिसे अंतरात्माके ध्यानपूर्वक दो घड़ीसे चार घड़ीतक उपशांत व्रत.
. (२) श्रुत-पअनन्दि आदि अध्ययन, श्रवण. मध्याहमें-(१) चार घड़ी उपशांत व्रत.
(२) श्रुत-कर्मग्रन्थका अध्ययन, श्रवण; सुदिष्ट[दृष्टि]तरंगिणी आदिका थोडा
अध्ययन. सांयकालमें-(१) क्षमापनाका पाठ.
(२) दो घड़ी उपशांत व्रत. ..
(३) कर्मविषयक ज्ञानचर्चा. २. सब प्रकारके रात्रिभोजनका सर्वथा त्याग । हो सके तो भाद्रपद पूर्णिमातक एक समय आहार लेना.
पंचमीके दिन घी, दूध, तेल, दहीका भी त्याग । उपशांतव्रतमें विशेष काल बिताना हो सके तो उपवास करना।
हरियाली सर्वथा त्याग ( आठों दिन )। ब्रह्मचर्य-आठों दिन पालना । बने तो भाद्रपद पूनमतक । शमम्. .