Book Title: Shrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 910
________________ ટાટ श्रीमद् राजचन्द्र आदि सभी लोग इस धर्मके अनुयायी हैं। ब्लैवेट्स्कीके बाद श्रीमती एनीबिसेन्टने इस सोसायटीकी उन्नति के लिये बहुत उद्योग किया । थियोसफीका गीताका गुजराती विवेचन थियोसफिकल सोसायटी 1 बम्बई से सन् १८९९ में प्रकाशित दशवैकालिक ( आगमग्रंथ ) - है । दशवैकालिककी कुछ गाथाओंका राजचन्द्रजीने अनुवाद किया है, जो अंक ३४ में छपा है । हुआ दयानन्द स्वामी दयानन्दका जन्म सं० १८८१ में मोरबी राज्यके अन्तर्गत टंकारा गाँवके एक धनी घरानेमें हुआ था । स्वामी दयानन्दके पिता एक कट्टर ब्राह्मण थे । दयानन्द स्वामी आरंभ से ही स्वतंत्र बुद्धिके थे, और मिथ्या व्रत आदिका विरोध किया करते थे । जब स्वामीजी बाईस वर्षके हुए तो उनके विवाह के बातचीत हुई । विवाहकी सब तैय्यारियाँ भी हो गईं, पर दयानन्द इस समाचारको सुनते ही कहीं भाग गये, और गेखे रंगके वस्त्र पहिनकर रहने लगे । दयानन्दजीको सद्गुरुकी तालाशमें इधर उधर बहुत भटकनेके पश्चात् पंजाब में स्वामी विरजानन्दजीके दर्शन हुए। दयानन्द ने अपने गुरुके पास अढ़ाई बरस रहकर संस्कृत और वेदोंका खूब अभ्यास किया । विद्याध्ययन के पश्चात् स्वामी दयानन्दने वैदिकधर्मका दूर दूर घूमकर प्रचार किया । काशीमें आकर इन्होंने वैदिक पंडितोंसे भी शास्त्रार्थ किया | स्वामीजीकी प्रतिभा और असाधारण बुद्धिकौशल देखकर बहुतसे लोग उनके अनुयायी होने लगे । स्वामी दयानन्दने सं० १९३२ में बम्बई में आर्यसमाजकी स्थापना की । स्वामीजी ने उदयपुर, इन्दौर, शाहपुरा आदि रियासतों में भी प्रचारके लिये भ्रमण किया । अन्तमें वे जोधपुर के महाराणाके यहाँ रहने लगे । वहाँ कुछ लोग उनके बहुत विरोधी हो गये, और उनके रसोइयेसे उन्हें विष दिलवाकर मरवा डाला । स्वामीजीने संवत् १९४० में दिवालीके दिन देहत्याग किया । इनके बाद स्वामी श्रद्धानन्द लाला लाजपतराय आदिने आर्यसमाजका काम किया । स्वामी दयानन्दने हिन्दीमें सत्यार्थप्रकाश नामक पुस्तक लिखी है, जिसमें सब धर्मोकी कड़ी समालोचना की गई है । 1 *दयाराम कवि दयारामका जन्म सन् १७७७ में हुआ था । उन्हें देवनागरी लिपिके अतिरिक्त अन्य कोई लिपि न आती थी । इन्होंने गुजराती, हिन्दी, पंजाबी, मराठी, संस्कृत और फारसी भाषामें 1 कवितायें की हैं। उनके एक शिष्यके कथनानुसार दयारामने सब मिलाकर १३५ ग्रन्थोंकी रचना की है। इसके अतिरिक्त उन्होंने बहुतसे पद लावनी वगैरह भी लिखे हैं । दयाराम कृष्णके बहुत भक्त थे, और इन्होंने कृष्णलीलाके बहुतसे रसिक पद वगैरह लिखे हैं । दयारामने गोकुल, मथुरा, काशी, वृंदावन, श्रीनाथजी आदि सब धामोंकी सात बरस घूमकर यात्रा की थी । इनके शिष्य दयारामको नरसिंह मेहताका अवतार मानते थे । इनका मरण सन् १८५२ में हुआ । राजचन्द्रजीने इनके पद उद्धृत किये हैं । दासबोध (देखो रामदास ). देवचन्द्रजी देवचन्द्रजीका जन्म मारवाड़ में संवत् १७४६ में हुआ था । देवचन्द्रजी श्वेताम्बर आम्नायमें

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