Book Title: Shrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 962
________________ ८७० भीमद् राजचन्द्र अशुद्ध शुद्ध छलाइन २००-२१ आती भाती होगी २०४-६ त्यागी का त्याग करके २०६-२१ छोड़कर २०८-४ भगवती भागवती २१५-१ उनको उसको २१५-१२ आंतर अनहद २१६-२ इसके स्वप्रका इसका स्वपमें भी २१६-६ ओषाकवि......हमारे मुक्तानन्दका नाथ कृष्ण ही, हे उद्धव ! हमारे २१७-२६ अज्ञानी अज्ञात २१७-२६ रोक कर २१८-३० मुझमें वैसी तथारूप यहाँ वैसी २१९-६ किसी किसी किसी २१९-१७ प्रकाशिता प्रकाशिका २१९-२४ (उपसंहारको यहां शीर्षक समझना चाहिये) २२२-४ दु:षमके विषयमें......की दुःषम कमीवाला है, यह दिखानेकी . २२२-१३ लागू मालूम २२२-२२ और और ऐसे जीव २२२-२४ जीनेवाले ऐसे जीव जीनेवाले २२२-२९ और इस......सत् और यह अनुभव ही इस कथनका सत्साक्षी २२३-१३ जिस वर्तमानकालमें हूँ अभी जिस स्थितिमें हूँ २२४-१२ छालसहित समूचा २२४-१३ नारियल है नारियलका वृक्ष है। २२७-१४ उपदेश किया है लिखा है। २३२-१ इसी २३२-१९,२०,३० मक्खन दही २३४-२१ पहिला २३७-२३ देखते देखते हो २३९-९ तो ऐसा तो २४१-१२ लो लो २४४-२१ हो सकती है होनी चाहिये २४८-२४ “पीपी" "प्रिय प्रिय" २५०-२९ कभी कभी संभव है २५०-३० जाता है २५४-४ रुक हो २५५-२५,३० मित्रभाव मिनभाव २५८-११,१२ विचारके परिणाममे......जीवको उत्पन्न विचारके फलस्वरूप जो कुछ करना योग्य होता है और हो जाता है जिसके बारेमें किसी भी प्रकारसे नहीं होता' इस तर उसे मालूम होता था वह प्रगट होने के कारण या तो उसमें उत्पन होते हैं वह जाय

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