Book Title: Shishupal vadha Mahakavyam
Author(s): Gajanan Shastri Musalgavkar
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ [13] प्रभाव हमारे अलंकार शास्त्रों पर पड़ा है । राजकीय युग का प्रभाव हमारे अलंकारशास्त्रों पर पड़ा है । राजकीय ठाट-बाट का जीवन कवि का भी आदर्श हो गया । राजशेखर ने कवि के जिस शानदार जीवन का चित्र अंकित किया है, वह कम आश्चर्यजनक नहीं है। 'माघ' पण्डित कवि की समृद्धि का वर्णन "प्रबन्धचिन्तामणि" आदि ग्रंथों में बड़ी मुखर भाषा में किया गया है । स्वयं राजा भोज को उस समृद्धि के सामने चकित और हतगर्व होना पड़ा था । ऐसा प्रतीत होता है कि इस श्रेणी के कवियों के सामने वाल्मीकि, व्यास, और कालिदास का आदर्श नहीं था । प्राचीन ग्रंथों में राजसभाओं का जो वर्णन पाया जाता है, वह यद्यपि एक प्रकार के काव्य विनोदों से परिपूर्ण है, फिर भी उक्तिवैचित्र्य को या कौशल विशेष को ही विशेष सम्मान प्राप्त होता था । कादम्बरी में बाणभट्ट ने इस राजसभा का बड़ा ही रोचक वर्णन किया है । उनके वर्णन से ज्ञात होता है कि दरबार में काव्य-विनोद की रुचि थी, परन्तु वह काव्य विनोद बिन्दुमती, प्रहेलिका, चित्र आदि काव्यों की श्रेणी का था । राजसभा में शास्त्र-चर्चा भी होती थी । नाना शास्त्रों के तज्ञ पण्डित तर्क-युद्ध में उतरते थे । कवियों की नानाभाव से परीक्षा होती थी । तात्पर्य यह है कि कवि को ऐसी राजसभा में अपनी कविता पढ़कर कीर्ति प्राप्त करनी होती थी । हम उस युग की कविता की चर्चा करते समय इस बाह्य-परिस्थिति की उपेक्षा नहीं कर सकते । वस्तत: इस प्रकार के साहित्यिक तथा पाण्डित्यमय वातावरण और सहृदय की विदग्धता ने कवियों को एक नई प्रेरणा दी । फलतः पूर्वागत रसमय शैली के स्थान पर एक नवीन 'विचित्र' मार्ग चल पड़ा, जिसमें विषय की अपेक्षा उसकी अभिव्यञ्जना, वर्णनं प्रकार में सरसता के स्थान पर वैदग्ध्य पर अधिक बल दिया जाने लगा । साथ ही काव्य की सजावट के लिए वात्स्यायन के कामसूत्र तथा अन्य शास्त्रों का उपयोग होने लगा । ऐसे ही नवीन युग के प्रतीक स्वरूप तथा पूर्ववर्ती काव्यधारा के दाय रूप में प्राप्त गुणों को आत्मसात कर अपनी विदग्धता एवं व्युत्पत्ति से काव्य की नवीन शैली की उद्भावना में संश्लिष्ट रहने वाले दो महाकवि हैं- 'भारवि' और 'माघ' । इतना तो निश्चित है कि इन दोनों में 'सुकवि-कीर्तिदुराशया' से कवि कर्म करने वाले 'माघ' विदग्धता और कलानैपुण्य में 'भारवि' से अधिक आगे बढ़े हुए हैं । काव्य में उनका कल्पना चातुर्य, वृत्त-प्रभुत्व, पाण्डित्य, और भाषा का प्रखर ज्ञान सबकुछ विस्मयावह है । हाँ, यदि हम कालिदास के काव्य की ऋजुता, स्वाभाविकता और भावतरलता के बिन्दु को छोड़ दें और माघ के सम्पूर्ण काव्य-शिशुपालवध-में झाँककर देखें तो हृदय की अपेक्षा मस्तिष्क, कवित्व की अपेक्षा पाण्डित्य का एक विचित्र समन्वित रूप ही दिखाई देता है' । वस्तुत: मनुष्य का यथार्थ व्यक्तित्व उसके हृदय में निहित रहता है, मस्तिष्क में नहीं । Man is hidden in his heart not in his head". १. काव्य मीमांसा - दशमोध्यायः, पत्र १३०, चौखम्भा प्रकाशन

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 231