Book Title: Shilopadesh Mala
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidyashala
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शीलोपदेशमाला. नाटक करनार, जार अथवा धूर्त विगेरे कुमित्रनी साथे क्यारे पण संग करवो नहीं; कारण के, सारा संगथी माणसने सारा गुणो प्राप्त थाय डे श्रने खोटा संगथी दोषो पण प्राप्त थाय बे. ॥ कयु डे के
गुणागुणज्ञेषु गुणीनवंति, ते निर्गुणं प्राप्य नवंति दोषाः ॥ सुखातोयप्रनवा हि नद्यः, समुडमासाद्य नवंत्यपेयाः ॥१॥ अर्थ- गुणो गुणना जाणने विषे गुणसमान थाय बे; पण ते गुणो निर्गुणने पामीने दोषरूप थाय बे. दृष्टांत कहे डे के, उत्तम खादवाला पाणीवाली नदी दार समुज्ने पामीने पीवा योग्य पाणीवाली रहेती नथी. अर्थात् खारी थर जाय . ॥ १० ॥
हवे स्त्रीउना गुणो कहे जे. मितन्नाषिणी सुखका कुलदेशवयोनुरूपवेषधरा मीयनासिणी सुलजा कुलदेसवयाणुरूववेसधरा॥ . अत्रमणशीला त्यक्तासतीसंगा भवेत् नारीअपि
अर्नेमणसीला चत्ता-संश्संगा ढुंज नारीवि ॥१०३ ॥ शब्दार्थ- (मीयत्नासिणी के० ) थोडं बोलनारी (सुलजा के०) सारी लाजवाली (कुलदेसवयाणुरूववेसधरा के०) कुल, देश श्रने अवस्थाने योग्य एवा वेषने धारण करनारी (अनमणसीला के०) नथी जमवा. नो खन्नाव जेनो एवी तथा (चत्तासश्संगा के०) त्याग कस्यो बे असतिस्त्रीनो संग जेणे एवी (नारीवि के०) स्त्री पण (हुऊ के० ) होय जे.
विशेषार्थ- थोडं बोलनारी, सारी लाजवाली, देश, कुल अने श्रवस्थाने अनुसरतो वेष धारण करनारी, पोताना घरना आंगणे रहेनारी श्रने असती स्त्रीउनो संग त्यजी देनारी एवी पण स्त्री होय . ॥१३॥ स्त्रीए सारी लाज राखवी जोशए. न राखे तो हानी थाय ने कह्यु के
असंतोषात् हिजा नष्टाः, संतोषेण तु पार्थिवाः ॥ सलजा गणिका नष्टा, निर्लजाश्च कुल स्त्रियः॥१॥ अर्थ- ब्राह्मणो असंतोषथी, राजा संतोषथी, गणिका लाजवाली होवाथी अने कुलस्त्री निर्लङ्ग होवाथी हानी पामे बे. ॥१॥

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