Book Title: Saptasandhan Mahakavya Author(s): Meghvijay, Amrutchandracharya Publisher: Jain Sahitya Vardhak Sabha View full book textPage 2
________________ ॥ श्री गौतमस्वामिने नमः ।। -: प्रास्तविक-पुरोवचन :आ विश्वमा घणा पार्थिव-रत्नो के. तेमाना केटलाएकनुं मूल्य लाखो अने करोडो रुपीयाथी पण अधिक होय छे. ते प्रमाणे केटलाएक मानवरत्नो विश्वने विभूषित करी रक्षा छे. जेमनी किंमत पार्थिवरत्न करतां घणीज विशेष होय छे. ते मानवरत्नोने उत्पन्न करनार ग्रन्थरत्नो छे, ने ते कारणे सवैकरतां विशेष मूल्यवान् ग्रन्थरनो छे. वस्तुतः तो ते-ग्रन्थरत्नोनी किंमतज नथी. अमूल्यन छे. एक वस्तु करतां बीजी वस्तुनी किंमत वधारे अंकाय त्यारे समजवू जोइए के पेली करतां बीजीमां कंइक विशेषता छे. आ 'सप्तसन्धान महाकाव्य' ने विद्वानो सर्वश्रेष्ठ-अजोड-अद्वितीय संस्कृतसाहित्यमा प्रथमकोटिनु कही ओळखे छे, ने ओळखावे छे, तो ते का विशेषताने कारणे, ए जाणवु आवश्यक छे. ते विशेषताओ नीचे प्रमाणे छे (१) अन्य काव्यग्रन्थोमा एक श्लोकनो एकान अर्थ नीकळतो होय छे, कदाच कोइ कोइ काव्यो एवा होय हे के, जेना दरेक श्लोकोमांथी बेबे अर्थ नीकळी बे जीवनचरित्र समजावता होय छे. ज्यारे आ सप्तसन्धान महाकाव्यना दरेक श्लोको सात महापुरुषोना जीवनवृत्तान्तने समजावे छे. तेथी ते सप्तार्थक-सप्नसन्धान कहेवाय छे. (२) अन्य काव्योमा कोइ सामान्य के मध्यमकोटिना नायकोना जीवन गुंथ्या होय छे. तो आमां उत्तमोत्तम-परमपुरुष परमात्मा श्रीऋषभदेव श्रीशान्तिनाथ श्रीनेमिनाथ श्रीपाश्वनाथ श्रीमहावीर स्वामिजी अने स्वपरदर्शनमसिद्ध उत्तमपुरुष श्रीरामचन्द्रजी अने श्रीकृष्ण वासुदेवना जीवन गुंथायेला छे.Page Navigation
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