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स्वर्गखण्ड]
• नर्मदाके तटवर्ती तीर्थोका वर्णन .
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उत्तम तीर्थ है। श्रावण मासके कृष्णपक्षकी चतुर्दशीको बैठकर ब्रह्मलोकमें जाता है। तदनन्तर धौतपाप नामक वहाँ स्रान करनेमात्रसे मनुष्य रुद्रलोकमें सम्मानित होता तीर्थमें जाना चाहिये। वहाँ स्नान करनेसे ब्रह्महत्या दूर है। वहाँ पितरोंका तर्पण करनेपर तीनों ऋणोंसे छुटकारा होती है। इसके बाद हिरण्यद्वीप नामसे विख्यात तीर्थमें मिल जाता है। गयेश्वरके पास ही गङ्गावदन नामक उत्तम जाय । वह सब पापोंका नाश करनेवाला है। वहाँ स्नान तीर्थ है; वहाँ निष्काम या सकामभावसे भी स्नान करनेसे मनुष्य धनी तथा रूपवान् होता है। वहाँसे करनेवाला मानव जन्मभरके पापोंसे मुक्त हो जाता कनखलको यात्रा करे। वह बहुत बड़ा तीर्थ है। वहाँ है-इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। पर्वके दिन वहाँ गरुड़ने तपस्या की थी। जो मनुष्य वहाँ स्नान करता है, सदा स्नान करना चाहिये। उस तीर्थमें पितरोंका तर्पण उसकी रुद्रलोकमें प्रतिष्ठा होती है। तदनन्तर करनेपर मनुष्य तीनों ऋणोंसे मुक्त होता है। उसके पश्चिम सिद्धजनार्दन तीर्थकी यात्रा करे । वहाँ परमेश्वर श्रीविष्णु और थोड़ी ही दूरपर दशाश्वमेधिक तीर्थ है; वहाँ भादोंके वाराहरूप धारण करके प्रकट हुए थे। इसीलिये उसे महीने में एक रात उपवास करके जो अमावास्याको सान वाराहतीर्थ भी कहते हैं। उस तीर्थमें विशेषतः द्वादशीको करता है, वह भगवान् शङ्करके धामको जाता है। वहाँ स्नान करनेसे विष्णुलोककी प्राप्ति होती है। भी पर्वके दिनोंमें सदा ही स्नान करना चाहिये। उस राजेन्द्र ! तदनन्तर देवतीर्थमें जाना चाहिये, जो तीर्थमें पितरोका तर्पण करनेसे अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त सम्पूर्ण देवताओद्वारा अभिवन्दित है। वहाँ स्रान करके होता है।
मनुष्य देवताओंके साथ आनन्द भोगता है। तत्पश्चात् - दशाश्वमेधसे पश्चिम भृगुतीर्थ है, जहाँ ब्राह्मणश्रेष्ठ शिखितीर्थकी यात्रा करे, यह बहुत ही उत्तम तीर्थ है। भृगुने एक हजार दिव्य वर्षातक भगवान् शङ्करकी वहाँ जो कुछ दान किया जाता है, वह सब-का-सब उपासना की थी। तभीसे ब्रह्मा आदि सम्पूर्ण देवता और कोटिगुना अधिक फल देनेवाला होता है। जो किन्नर भृगुतीर्थका सेवन करते हैं। यह वही स्थान है, कृष्णपक्षमें अमावास्याको वहाँ स्नान करता और एक जहाँ भगवान् महेश्वर भृगुजीपर प्रसन्न हुए थे। उस ब्राह्मणको भी भोजन कराता है, उसे कोटि ब्राह्मणों के तीर्थका दर्शन होनेपर तत्काल पापोंसे छुटकारा मिल भोजन करानेका फल प्राप्त होता है। जाता है। जिन प्राणियोंकी वहाँ मृत्यु होती है, उन्हें राजा युधिष्ठिर ! तदनन्तर, नर्मदेश्वर तीर्थकी यात्रा गुह्यातिगुह्य गतिकी प्राप्ति होती है-इसमें तनिक भी करनी चाहिये । वह भी उत्तम तीर्थ है। वहाँ स्नान करके सन्देह नहीं है। यह क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत तथा सम्पूर्ण मनुष्य स्वर्गलोकमें प्रतिष्ठित होता है। इसके बाद पापोंका नाश करनेवाला है। वहाँ स्नान करके मनुष्य पितामह-तीर्थमें जाना चाहिये, जिसे पूर्वकालमें साक्षात् स्वर्गको जाते हैं; तथा जिनकी वहाँ मृत्यु होती है, वे फिर ब्रह्माजीने उत्पन्न किया था। मनुष्यको उचित है कि वहाँ संसारमें जन्म नहीं लेते-मुक्त हो जाते हैं। उस तीर्थ में स्नान करके भक्तिपूर्वक पितरोंको पिण्डदान दे तथा तिल अन्न, सुवर्ण, जूता और यथाशक्ति भोजन देना चाहिये। और कुशमिश्रित जलसे पितरोंका तर्पण करे। उस इसका पुण्य अक्षय होता है। जो सूर्यग्रहणके समय वहाँ तीर्थके प्रभावसे वह सब कुछ अक्षय हो जाता है। जो स्नान करके इच्छानुसार दान करता है, उसके तीर्थस्नान सावित्री-तीर्थमें जाकर स्नान करता है, वह सब पापोंको
और दानका पुण्य अक्षय होता है। जो मनुष्य एक बार धोकर ब्रह्मलोकमें सम्मानित होता है। वहाँसे मानस भृगुतीर्थका माहात्म्य श्रवण कर लेता है, वह सब पापोंसे नामक उत्तम तीर्थको यात्रा करनी चाहिये। उस तीर्थमें मुक्त होकर रुद्रलोकमें जाता है। राजेन्द्र ! वहाँसे परम स्नान करके मनुष्य रुद्रलोकमें प्रतिष्ठित होता है। उत्तम गौतमेश्वर तीर्थको यात्रा करनी चाहिये। जो मनुष्य तत्पश्चात् क्रतुतीर्थको यात्रा करनी चाहिये । वह बहुत ही वहाँ नहाकर उपवास करता है, वह सुवर्णमय विमानपर उत्तम, तीनों लोकोंमें विख्यात और सम्पूर्ण पापोका नाश