Book Title: Sahityadarpanam
Author(s): Sheshraj Sharma Negmi
Publisher: Krushnadas Academy
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षष्ठः परिच्छेदः
रामा रम्ये वनान्तेऽस्मिन् मया विरहिता त्वया ॥
(नेपथ्ये तथैव प्रतिशब्दः) राजा-कथं दृष्टेत्याह ।' अत्र प्रश्नवाक्यमेवोत्तरत्वेन योजितम् । नटादित्रितयविषयमेवेदमिति कश्चित् ।।
प्रियाभैरप्रियाक्यर्विलोभ्य च्छलना च्छलम् । यथा वेण्याम्_ 'भीमार्जुनौ
कर्ता धूतच्छलानां, जतुमयशरणोद्दीपनः, सोऽभिमानी भवता, दृष्टा = विलोकिता? इति काकुः । उत्तरपक्षे तु-हे सर्वक्षितिभृतां वाथ-समस्त भूपतिपते !; अस्मिन्, रम्ये-मनोहरे, वनान्ते-अरण्यप्रान्ते, त्वया भवता, विरहिता= संजातविरहा, सर्वाङ्गसुन्दरी रामा मया दृष्टा ।
नेपथ्य इति । तत्र एव = पर्वत एव, प्रतिशब्दः = "सर्वक्षितिभूतो नाप" इत्याचाकारकः प्रतिध्वनिः भवतीति शेषः । राज = पुरुरवाः ।
त्रिगतपदव्युत्पत्तिमाह-नटादीति । इदं - त्रिगतं, नटादित्रितयविषयं - नट: (सूत्रधारः) आदिपदेन नटीप्रतिनट्योहणं, तत्रितयविषयम् = तत्त्रयविषयम् । कश्चित् = दशरूपककारः।
छलं लक्षयति-प्रियाभरिति । प्रियामः - प्रियस्वरूपः, आपातत इति शेषः । अप्रियः अप्रियस्वरूपैः वाक्यैः पदसमूहैः, विलोभ्य-लोभं जनयित्वा, छलना-प्रतारणं, "छल" नाम वीथ्यङ्गम् । . छलमुदाहरति-कर्तेति । सुयोधनाऽनुजीविनः प्रति भीमार्जनयोक्तिरिति । धु तच्छलानाम् = अक्षक्रीडावञ्चनानां, कर्ता = कारकः, जतुमयशरणोद्दीपनः = अतुमयं वनके प्रान्तमें मेरे विरहसे युक्त सर्वाङ्गसुकरीस्त्रीको तुमने देखा है ? यहाँपर प्रश्नके पक्षमें "सर्वक्षितिभृतां नाथ" इन पदोंसे पर्वत लिया जाता है।
- उत्तर पक्ष में हे संपूर्ण राजाओंके स्वामिन् ! इस वनके प्रान्तमें तुमसे विरहिणी सर्वाङ्ग सुन्दरी स्त्रीको मैंने देखा। इस प्रकार यहाँपर "सर्वक्षितिभृतां नाथ" इन पदोसे संपूर्ण राजाओंमें श्रेष्ठ ऐसा अर्थ लिया जाता है। (नेपथ्यमें उसी तय प्रतिध्वनि गुंजती है)। राजा-कैसे "देखा" ऐसा कहा ? इस पबमें प्रश्न वाक्यको ही उत्तर वाक्यके रूपमें योजित किया है। नट (सूत्रधार) नटी और प्रतिनट (पारिपाश्विक) इन तीवोंके विषयमें यह होता है ऐसा कोई (दशरूपककार ) कहते हैं।
छल-प्रियके सदृश अप्रियवाक्योंसे लुभाकर छलनेको "छल" कहते हैं। जैसे वेणी (संहार ) में भीमसेन और मर्जुन-(दुर्योधनके अनुचरोंको

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