Book Title: Sadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth Author(s): Dineshmuni Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay View full book textPage 7
________________ आशीर्वचन परस्परोपही जीवानाम जीवन, पुष्प की तरह होना चाहिए, पुष्प, साधारण एवं सामान्य उपादानों से भी ___ मन मोहक सौन्दर्य-सुषमा, अद्भुत परिमल-पराग प्राप्त कर संसार को प्रसन्नता और प्रफुल्लता प्रदान करता रहता है। महासती श्री पुष्पवतीजी अपने जीवन-पुष्प को ज्ञानादि सद्गुणों की सौरभ तथा संयम-शील के विरल सौन्दर्य से मंडित कर जिनशासन के श्रमण संघीय उपवन में सुरभि और सुषमा का विस्तार कर रही हैं, उनके दर्शन-प्रवचन-श्रवण आदि से भव्यजनों का मन प्रफुल्लित हो रहा है। उनके जीवन-सुमन की सुरभि का विस्तार कर सबको प्रीणित करने वाला यह अभिनन्दन ग्रन्थ त्याग-शील-संयम-श्रुत की गौरव-गाथा बने यही हार्दिक शुभ भावना है । --आचार्य आनन्द ऋषि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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