Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
एकेन्द्रियादिक में गृहीतमिथ्यात्व शंका - क्या मनुष्य ही गृहीत मिथ्यादृष्टि होते हैं ? क्या अन्य जीव गृहीत मिथ्यादृष्टि नहीं होते ? देवों में भी ऐसे बहुत देव देखे जाते हैं जो अपनी पूजा करने के लिए मनुष्यों को प्रेरित करते हैं, नाना मिथ्या मान्यता रखते हैं, विभिन्न मिथ्याऽनुष्ठानों से तृप्त होते हैं, आदि । उन्हें गृहीतमिथ्यात्वी क्यों नहीं माना जाय ?
शंका-सार यह है कि गृहीत मिथ्यात्व कितनी गतियों ( जातियों ) में पाया जाता है ?
समाधान-धवल पु० १ पृ० २७५ [ नया संस्करण पृ० २७७ ] सूत्र ४३ की टीका-"अथवा ऐकान्तिक सांशयिक, मूढ़ ( अज्ञान ), व्युग्राहित, वैनयिक, स्वाभाविक ( अगृहीत ) और विपरीत; इन सातों प्रकार के मिथ्यात्वों का उन पृथिवीकायिक आदि जीवों में सद्भाव सम्भव है, क्योकि जिनका हृदय सात प्रकार के मिथ्यात्वरूपी कलंक से अंकित है ऐसे मनुष्यगति आदि सम्बन्धी जीव पहले ग्रहण की हुई मिथ्यात्व पर्याय को न छोड़कर जब स्थावर पर्याय को प्राप्त होते हैं तो उनके सातों ही प्रकार का मिथ्यात्व पाया जाता है।" इन वाक्यों से जाना जाता है कि सभी गतियों में गृहीत मिथ्यात्व सम्भव है।'
-पत 21-4-80/I/ज0 ला0 जैन, भीण्डर सातिशय व निरतिशय मिथ्यादष्टि से अभिप्राय शंका-सातिशय मिथ्यादृष्टि का क्या अर्थ है ? सातिशय मिथ्यादृष्टि और निरतिशय मिथ्यादृष्टि में क्या अन्तर है ?
समाधान-जो मिथ्यादृष्टि सम्यग्दर्शन के अभिमुख है, वह सातिशय मिथ्यादृष्टि है। उसके परिणामों में निरंतर प्रतिसमय अनन्तगुणी विशुद्धि बढ़ती जाती है। वह गुणश्रेणी निर्जरा करता है। साधारण मिथ्याष्टि को निरतिशय मिथ्याष्टि कहते हैं।
-ज.ग. 12-12-66/VII/ज. प्र. म. क.
सातिशय मिथ्यात्वी कहाँ कहाँ जाता है ? शंका-क्या सातिशय मिथ्यावृष्टि जीव बिना उपशम सम्यक्त्व प्राप्त किये बीच में पुनः मिश्यात्व को लौट जाता है ?
समाधान-यदि सातिशय मिथ्यादृष्टि जीव पांचवीं करपलब्धि को प्राप्त होगया है तो उसके प्रथमोपशम सम्यक्त्व की प्राप्ति अवश्य होगी। जो सातिशय मिथ्यादृष्टि जीव करणलब्धि को प्राप्त नहीं हुआ है उसके सम्यक्त्व की प्राप्ति भजनीय है, क्योंकि प्रारंभ की चारों ही लब्धियाँ भव्य और अभव्य दोनों मिथ्यादृष्टि जीवों के संभव हैं। लब्धिसार गाथा ३ । सातिशय मिथ्यादृष्टि तो मिथ्यादृष्टि है अतः उसका पुनः मिथ्यात्व में लौटने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता।
-जे. सं. 31-7-58/V/नि. कु. गैन, पानीपत
१. दि०१४-3-50 के पत्र में प्रथम समाधान में आपने लिखा था कि गृहीत मिथ्यात्व चारों गतियों में व पांचों
इन्द्रियों वाले जीवों में होता है। एकेन्द्रियों में भी होता है।
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