Book Title: Prakrit Gadya Sopan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 5
________________ जीवन-मूल्यों का ज्ञान कराने में भी सक्षम हैं । लेखक ने प्राकृत साहित्य से उन सार्वभौमिक नैतिक मूल्यों का चयन इन पुस्तकों में किया है, जो बालकों के जीवन - विकास के लिए आवश्यक हैं । जाति, सम्प्रदाय एवं संकीर्णता से ऊपर उठकर कोई भी पाठक इन पुस्तकों की विषयवस्तु से प्रेरणा ग्रहरण कर सकता है । अत: विद्यालयों में नैतिकशिक्षा के पठन-पाठन की पूर्ति भी इन पुस्तकों के माध्यम से हो सकती है । आशा है, प्राकृत प्रेमी जनता एवं शिक्षाविद् संस्थान के इन प्रकाशनों का स्वागत करेंगे । संस्थान ने प्राकृत भाषा एवं साहित्य के शिक्षरण कार्य के लिए डॉ. प्रेम सुमन जैन की उपर्युक्त तीन पुस्तकें प्रस्तुत की हैं। साथ ही प्राकृत व्याकरण - शिक्षण की नई शैली के लिए डॉ. उदयचन्द्र जैन की पुस्तक हेम प्राकृत व्याकरण - शिक्षरण ( खण्ड 1 ) एवं खण्ड 2 (शीघ्र प्रकाश्य) पाठकों के समक्ष उपस्थित की हैं। डॉ. कमल चन्द सोगाणी की पुस्तकें वाक्पतिराज की लोकानुभूति एवं श्राचारांग चयनिका भी मूलत: प्राकृत - व्याकरण के ज्ञान को पुष्ट करने के लिए हैं । जैनविद्या एवं प्राकृत विभाग, सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से सम्बद्ध इन तीनों विद्वानों की नवीन शैली की प्राकृत की पुस्तकें प्रकाशित करके संस्थान गौरव का अनुभव करता है कि वह अपने उद्देश्य की पूर्ति में अग्रसर हुआ है । आशा है, प्राकृत-प्रेमी समाज भी संस्थान के इन प्रकाशनों से लाभान्वित होगा । संस्थान इस पुस्तक के शीघ्र एवं सुन्दर मुद्ररण कार्य हेतु ऋषभ मुद्रणालय, उदयपुर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन करता है । राजस्वरूप टांक अध्यक्ष देवेन्द्रराज मेहता सचिव राजस्थान प्राकृत भारती संस्थान, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only म. विनयसागर संयुक्त सचिव जयपुर. www.jainelibrary.org

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