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अनेकंसिक
सुनिश्चित तत्त्व या बात को ग्रहण न करना, सन्देहपूर्ण
मनोवृत्ति, संकल्प का अभाव
कड्ढा कढायना कडायतत्तं अनेकंसग्गाहो आसप्पना चित्तस्स मनोविलेखो, ध स. 425 सा संसयलक्खणा कम्पनरसा, अनिच्छयपव्युपद्धाना अनेकंसगाहपच्चुपट्ठाना वा, ध. स. अट्ठ. 298; ग्गाहपच्युपद्वान नपुं. ब. स. सन्देह या शङ्का से परिपूर्ण मानसिकता से व्यक्त होने वाला सा संसयलक्खणा, कम्पनरसा... अनेकंसगाहपच्चुपट्टाना वा... दट्ठब्बा, विसुद्धि. 2.98. अनेकंसिक त्रि, एकंसिक का निषे, क. अनिश्चित, अनिर्धारित, संदिग्ध, ख. अनेक दृष्टिकोणों से सम्बद्ध. अनेक खण्डों वाला एकसिकापि हि खो, पोट्टपाद, मया
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अनेकांसकापि हि खो, पोद्रपाद, मया धम्मा देसिता पकासिता, दी. नि. अ. 1.169; अनेकसिकाति न एककोट्ठासा एकेनेव कोद्रासेन सरसताति... अत्थो दी. नि. अड्ड 2.282 ता स्त्री. भाव, अनिश्चित मानसिक प्रकृति या अवस्था, संदिग्ध मनःस्थिति या दशा पण्डको अनेकसिकताय मन्तितं गुप्तं विवरति न धारेति मि. प. 104 भाव पु.. उपरिवत् कल्याणपापकानं अनेकसिकभावं समोधानेसि, जा. अट्ठ. 1.437. अनेकंसिकत त्रि., एकंसीकरोति के भू० क० कृ०, एकंसिकत का निषे, वह, जिसका निश्चय अभी तक नहीं किया गया है, अनिश्चयीकृत, सुनिश्चित तथ्य को प्रकाशित न करने वाला अनियतो न नियतो अनेकसिकतं पदं, परि. 284 अनेकसिकतं पदं, यस्मा इदं सिक्खापदं अनेकंसेन कतन्ति अत्थो, परि. अट्ठ. 192. अनेककारणेन तृ. वि. प्रतिरू, निपा. [ अनेककारणेन], कई एक पद्धतियों या तरीकों द्वारा तत्थ अनेकपरियायेनाति अनेककारणेन, दी. नि. अड्ड. 3.3: पारा, अड. 1.167. अनेककोटिसङ्घ त्रि०, ब० स० [ अनेककोटिसंख्य], कई करोड़ों की संख्या वाला सुमेधो नाम ब्राह्मणकुमारो हुत्वा .. मातापितूनं अच्चयेन अनेककोटिसङ्घं धनं परिच्चजित्वा .... ध. प. अट्ठ. 1.49. अनेककोटिसन्निचय त्रि.. तत्पु, स. [अनेककोटिसन्निचय], अनेक करोड़ की पूंजी को जमा कर लेने वाला अनेककोटिसन्निचयो, पहूतधनधज्ञवा जा. अड्ड. 1.4. अनेककोट्ठास त्रि. ब. स. [अनेककोष्ठांश ], अनेक भागों या खण्डों वाला अनेकभागेन गुणेनाति अनेककोद्वासेन आनिसंसेन पे व अड. 193.
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सत्था इमाय पकासेत्या जातकं
अनेकजातिसंसार
"...
अनेकगुण त्रि. ब. स. [ अनेकगुण ], बहुत सारे अच्छे गुणों से युक्त एवरूपो महाराज, बहुगुणो अनेकगुणो अप्पमाणगुणो गुणरासि गुणपुञ्जो सत्ताननं... मि. प. 188. अनेकग्गचित्त त्रि, एकग्गचित्त का निषे [ अनेकाग्रचित्त]. चित्त को किसी एक आलम्बन पर स्थिर करके न रखने वाला, चञ्चल अथवा बिखरे हुए चित्त वाला अनेकग्गचित्ता अयोनिसो च मनसि करोति, अ. नि. 2 (1). 164; ताकार पु०, तत्पु० स०, चित्त की चञ्चलता की दशा, विक्षिप्तचित्तता की अवस्था तेसं एवं विचरन्तानं विक्खित्तभावो अनेकग्गताकारो नाम, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.74 उपदयोति अनेकग्गताकारों, अ. नि. अड. 2.71 - भाव पु०, तत्पु० स० [अनेकाग्रभाव ] चित्त की चञ्चलता की अवस्था चित्त में एकाग्रता का न होना असमाधीति अनेकग्गभावो. अ. नि. अड्ड. 3.138. अनेकचित्त' त्रि., ब० स० [ अनेकचित्त], चञ्चल चित्त वाला, बिखरे हुए अथवा अस्थिर चित्त वाला सुरक्खितं मेति कथं नु विस्ससे, अनेकचित्तासु न इत्थि रक्खणा, जा. अ. 3.467; नरानमारामकरासु नारिसु अनेकचित्तासु अनिग्गहासु च, जा. अट्ठ. 5.432.
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वाला
अनेकचित्त' त्रि, एकचित्त का निषे०, ब० स० [ अनेकचित्र ], बहुत सारी सजावटों अथवा चित्रों से युक्त, अनेक अलङ्करणों अनेकचित्तन्ति अनेकेहि उय्यानकप्परुक्खपोक्खरणिआदीहि विमानेसु च अनेकेहि भित्तिविसेसादीहि चित्तं वि. द. अट्ट, 45; अनेकचित्तन्ति नानाविधचित्तरूपं, वि. व. अड्ड 273 अनेकचित्ताति अनेकविधचित्ततायुत्ता, वि. व. अड्ड. 88; सुवण्णवण्णा जलिता महायसा विमानमोरुह अनेकचित्ता वि. व. अट्ट 85 तावत त्रि तत्पु. स. [ अनेकचित्रावृत] अनेक प्रकार के चित्रों या अलङ्करणसाधनों से ढका हुआ, अलङ्करण- सामग्रियों से परिपूर्ण
अनेकचित्तावततो रथो अयं, पुथू च नेमी च सहस्सरंसिको, वि. व. अड. 229; अनेकचित्तावततोति अनेकेहि मालाकम्मादिधिरोहि आवततो समोकिष्णो वि. व. अड्ड
232.
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अनेकजातिसंसार पु० तत्पु० स० [ अनेकजातिसंसार], अनेक जन्मों में से होकर संसरण, एक जन्म से दूसरे जन्म में जाने का अन्तहीन सिलसिला अनेकजातिसंसार, सन्धाविस्सं अनिब्बिसं ध० प० 153; अनेकजातिसंसारं अनेकजातिसत सहस्ससङ्गतं इमं संसारव अनिब्बिसं अ. 71; अनेकजातिसंसार, सन्धावन्ति अविद्दसू, थेरीगा.
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