Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 715
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra असयंपाचक अस्वयंकृत रो फु. प्र. वि. ए. व. पु., प्र. वि., ए. व. - असयंकारो अपरंकारो अधिच्चसमुप्यन्नो अत्ता च लोको च दी. नि. 3.103; असयंकारोति आह असयंकतो ति यादिच्छिकत्ताति अधिप्पायो, लीन. ( दी. नि. टी.) 3.87. असयंपाचक त्रि सयंपाचक का निषे.. तत्पु. स. [ अस्वयंपाचक] अपने लिए स्वयं न पकाने वाला का पु. प्र. वि. ब. व. असामपाकाति असयंपाचका, लीन. ( दी. नि.टी.) 1.271. " असरह' त्रि. [अस], नहीं सहे जाने योग्य एवं तीव्र दुःख से पीडित - तिब्बदुक्खाभिभूता पु. प्र. वि. ब. क.. उपरिवत् अराष्टतिब्बदुक्खाभिभूता अताणा असरणा.... मि. प. 149. - CORA असय्ह' पु०, व्य. सं. (क) एक प्रत्येकबुद्ध - असय्हो खेमाभिरतो च सोरतो. म. नि. 3.116 महासेट्ठी पु. एक श्रेष्ठी या व्यापारी हि प्र. वि. ए. व. तेन समयेन रोरुवनगरे असहमहाद्रि नाम अहोसि पे व अड. 98. - www.kobatirth.org - असहसाही त्रि. नहीं सहने योग्य को सह लेने वाला, दूसरों द्वारा अपराजेय को पराजित कर देने वाला हिनं पु., द्वि. वि., ए. व. तथागतं बुद्धमसय्ह साहिनं, दुवे वितक्का समुदाचरन्ति न इतिवु, 24 अज्ञेहि सहितुं वहितुं असक्कुणेय्यत्ता, असय्हस्स सकलस्स बोधिसम्भारस्स च सहनतो वहनतो तथा अञ्जेहि सहितुं अभिभवितुं दुक्करता असहसाहिन इतिवु. अड्ड 132 हिनो पु, ष, वि.. ए. व. बुद्धरस पुत्तोम्हि असम्हसाहिनो, थेरगा. 536:हिनं ब. क. जयो कलिङ्गानमसहसाहिन जा. अड. अट्ठ 3.5: तत्थ असव्ह साहिनन्ति असम्हं दुस्सहं सहितुं समत्थानं तदेहिता स्त्री० भाव, नहीं सहे जाने योग्य को सहन करने की क्षमता यतृ. वि. ए. व. असहसाहिताय विसह जा. अड. 3.12. असय्हसीत त्रि०, ब० स० [असह्यशीतक ] न सहने योग्य ठण्डक वाला (क्षेत्र, लोक), अत्यधिक शीतलता से युक्त (स्थान) ते पु.. सप्त. वि. ए. व. तिब्बन्धकारे व असम्हसीते, लोकन्तरे ये असुरेसु दुक्ख विसुद्धि 2.129; विभ. अ. 91. असरण त्रि. ब. स. [अशरण] बिना शरण वाला आश्रय या सहारा न देने वाला णो पु०, प्र. वि., ए. व. असरणो लोकसन्निवासोति पटि. म. 116; असरणोति निस्सितानं न भयसारको न भयविनासको पटि म. अड्ड. 2.14 णा ब. व. अताणा अलेणा असरणा असरणीभूता, महानि. 7 ... 688 असल्लीन - अताणतो अलेणतो असरणतो 304 तो प. वि. ए. व. रित्ततो तुच्छतो सुञतो महानि० 38; निस्सितानं भयसारकत्ताभावेन असरणतो, महानि, अट्ठ. 132. असरणभाव पु., [अस्मरणभाव], विस्मरण की स्थिति, भुलक्कड़पन वं द्वि. वि., ए. व. कस्मा पनस्स सत्था असरणभाव अकासीति ? ध. प. अ. 2.67. असरणीभूत त्रि. [अशरणीभूत] उपरिवत् ता पु., प्र. वि., ब. व. अताणा अलेणा असरणा असरणीभूता महानि, 304. · Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir असरूप त्रि., ब० स० [असरूप] शा. अ. भिन्न स्वरूप वाला, ला. अ. उच्चारण-स्थान या मात्रा आदि की भिन्नता वाला (स्वर) - पा पु०, प्र. वि., ए. व. वा परो असरूपा, सरम्हा असरूपा परो सरो लोपं पप्पोति वा, क. व्या० 13; सद्द. 2.613. असल्लक्खण नपुं०, सल्लक्खण का निषे० तत्पु० स० [असंलक्षण ], संलक्षण या सूक्ष्म निरीक्षण का अभाव, गहरे दृष्टिपात का अभाव, ठीक से नहीं देखा जाना क्खणा प.वि., ए. व. रूपे खो, वच्छ, असल्लक्खणा... वेदनाय खो, स.नि. 2 (1). 259. असल्लक्खेत्वा अ. सल्लखेति के पू. का. कृ. का निषे. " [असंलक्ष्य ] ठीक से सोचे-विचारे बिना जल्दबाजी में, हड़बड़ाहट में - असल्लक्खेत्वापि निवेसनं पविसन्ति, चूळव. 358; अहं असल्लक्खेत्वा अक्कमि मा कुज्झीति वुत्तपि कुज्झियेव, जा. अट्ठ. 1.207. "... असल्लीन त्रि., सं + √ली के भू० क० कृ० का निषे. [असंलीन] उत्साह भरे चित्त वाला, अशिथिल, पूर्ण रूप से विकसित, असङ्कीर्णनं नपुं. प्र. वि., ए. व. आरद्ध वीरियं अहोसि असल्लीनं पारा 4 आरद्वत्तायेव च मे तं असल्लीनं अहोसि, पारा अट्ठ 1.103; नेन तू. वि.. ए. व. असल्लीनेन चित्तेन, वदेनं अज्झवासयि, स. नि. 1 (1). 186; असल्लीनेनाति अनल्लीनेन असङ्कुचितेन सुविकसितेनेव चित्तेन स. नि. अड. 1.197 त 1. नपुं. असलीन का भाव [असंलीनत्व] निरुत्साह या शिथिलता से रहित होना त्ताप. वि. ए. व. असल्लीनत्ता पहितत्तातिपि पठन्ति पटि म. अड्ड. 1.38 2. क्रि. ब. स. [असंलीनात्मन् ] निरुत्साह से रहित आत्मा वाला, असङ्कचित या उदार आत्मा वाला तो पु०, प्र. वि., ए. व. असल्लीनत्तपहितत्तपग्गहट्टे पञ्ञा वीरियारम्भे आणं, पटि. म. 3. तत्थ असल्लीनत्तपहिततपग्गहद्वेति कोराज्जवसेन 0 For Private and Personal Use Only - ·

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