Book Title: Padarth Prakash 11 Karm Prakruti Sankramakaran Udwartakaran Apvartanakaran
Author(s): Vijayhemchandrasuri
Publisher: Sanghvi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust

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Page 205
________________ 186 જયધવલાટીકામાં સ્થિતિઉદ્વર્તનાનો ઉત્કૃષ્ટ નિક્ષેપ समयाहियावलियमेत्तेण अग्गट्ठिदिमपत्तो त्ति / कुदो एवं ? ततो उवरि तस्स विवक्खियकम्मपदेसस्स सत्तिट्ठिदीए असंभवादो / तम्हा उक्कस्साबाहाए समयुत्तरावलियाए च ऊणिया कम्मट्ठिदी कम्मणिक्खेवो त्ति सिद्धं / किमेदिस्से चेव एक्किस्से उदयावलियबाहिरट्ठिदीए उक्कस्सणिक्खेवो, आहो अण्णासि पि ट्ठिदीणमत्थि त्ति एत्थ णिण्णयं कस्सामो। एत्तो उवरिमाणं पि आबाहाब्भंतरब्भुवगमाणं ट्ठिदीणं सव्वासिमेव पयदुक्कस्सणिक्खेवो होइ / णवरि आबाहाबाहियपढमणिसेयट्ठिदीए हेट्ठदो आवलियमेत्ताणमाबाहभंतरट्ठिदीणमुक्कस्सओ णिक्खेवो ण संभवइ, तत्थ जहाकममाबाहाबाहिरणिसेयट्ठिदीणमइच्छावणावलियाणुप्पवेसेणुक्कस्सणिक्खेवस्स हाणिदंसणादो / ' हिन्दी अनुवाद - 'उत्कृष्ट आबाधा और एक समय अधिक एक आवलि इनसे न्यून जितनी उत्कृष्ट कर्मस्थिति है उतना उत्कृष्ट निक्षेप है / ' 'एक समय अधिक बन्धावलिको गलाकर उदयावलिके बाहर स्थित स्थितिका उत्कर्षण होने पर यह उत्कृष्ट निक्षेप कहा है यह बात स्पष्ट है, क्योंकि उस स्थितिका एक समय अधिक एक आवलि और उत्कृष्ट आबाधासे न्यून उत्कृष्ट कर्मस्थितिप्रमाण उत्कृष्ट निक्षेप देखा जाता है / खुलासा इस प्रकार है - उत्कृष्ट स्थितिको बाँधकर और बन्धावलिको गलाकर तदनन्तर समयमे आबाधाके बाहरकी स्थितिमें स्थित कर्मपरमाणुओंका अपकर्षण करके उदयावलिके बाहर निक्षेप करता है / यहाँ पर अपकर्षण करके उदयावलिके बाहर दूसरी स्थितिमें निक्षिप्त हुआ द्रव्य विवक्षित है, क्योंकि उदयावलिके बाहर प्रथम समयमें जो द्रव्य निक्षिप्त होता है उसका तदनन्तर समयमें उदयावलिके भीतर प्रवेश देखा जाता है / फिर दूसरे समयमें उत्कृष्ट संक्लेशके कारण उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला कोई एक जीव

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