Book Title: Mrutyu Mahotsav
Author(s): Sadasukh Das, Virendra Prasad Jain
Publisher: Akhil Vishva Jain Mission

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Page 23
________________ यथार्थमें 'मृत्यु-महोत्सव' केटीकाकारके ऐसे ही उद्गार होने चाहिए थे । देखिए 'मृत्युमहोत्सव' रचनाके अवगाहनसे कितने कोमल, भव्य परिणाम हो जाते हैं-आपभी इसे अपने स्वाध्यायका विषय बनाइए तो आप भी मरण काल सु-दशाको प्राप्त कर सकेंगे। . यथार्थमें स्वर्गीय पंडितजीने इस छोटी-सी रचना पर भी वचनिका लिखकर बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किया है अब संस्कृतज्ञाता जब अत्यल्प होते चले जा रहे हैं उस दशामें इस रचनाको लोकोपयोगी बनाने के लिए इसकी भाषा वचनिकाकी रचना अत्यन्त श्रेयष्कर रही है। कहना न होगा कि आपकी वचनिकाके अर्थ और भावार्थ अत्यन्त स्पष्ट और रोचक भाषामें लिखे गए हैं। आपने आचार्यके हृदयकी अच्छी तरह थाह ली है तदनन्तर यह वचनिका लिखी। यह गद्य पुरानी भाषाकी गद्य है लेकिन यह आज भी कम पढ़ेलिखों के लिए भी बुद्धिगम्य है । कुछ सज्जनों की राय हुई थी कि इसको वर्तमान खड़ीबोली में भाषान्तरित कर दिया जाय लेकिन हमारी दृष्टि में अभी इसकी आवश्यकता नहीं क्योंकि वचनिका मूलरूपमें ही सर्वगम्य है । दूसरे इसमें खड़ीबोलीसे केवल विभक्तियोंमेंही अंतर है जो कुशलपाठक इसे पढ़ते समय ही रुच्यानुकूल कर सकते हैं। ___ इस बचनिकाको आधार मान कर ही मैंने मूल श्लोकोंका अंग्रेजीहिन्दी पद्यानुवादक किया है। मेरा संस्कृतका अल्पज्ञान है यथापि प्रयास तो यही किया कि मूल श्लोकोंकी अन्तर्भावधारापर कुठाराघात न हो जाय । फिर भी मेरे तुच्छ ज्ञानके परिणामस्वरूप पद्यानुवादमे कोई त्रुटियाँ रह गई हों, तो विद्वज्जन उसे सुधारकर हमें भी सचित करदें, जिससे कि अगले संस्करणोंमें उनका सुधार किया जा सके। विनीत:अलीगंज } घोरेन्द्र

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