Book Title: Mrutyu Mahotsav
Author(s): Sadasukh Das, Virendra Prasad Jain
Publisher: Akhil Vishva Jain Mission

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Page 33
________________ मृत्युकल्पद्रुमे प्राप्ते येनात्मार्थो न साधितः । निमग्नो जन्म जंबाले स पश्चात कि करिष्यति ॥७॥ 7. Getting Kalp-Vraksa, divine tree Who has not done his self's welfare, He stuck in world's mud boundry, Afterwards what can he do here? कर प्राप्त जिन्होंने कल्पवृक्ष, है निज कल्याण न कियत किया। वह विश्व-पङ्क में फंसा हुआ, ___पश्चाचात् कर सकेगा कुछ क्या ? ॥७॥ अर्थ-जो जीव, मृत्यु नामा कल्पवृक्षको प्राप्त होते हुवे अपना कल्याण नहीं सिद्ध किया, सो जीव संसाररूपी कर्दममें डूबा हुवा पीछे कहा करसी। - भावार्थ-इस मनुष्य जन्ममें मरण का संयोग है सो साक्षात कल्पवृक्ष है । जो वांछित लेना होय सो लेहू । जो ज्ञान सहित प्रपना निज स्वभावको ग्रहणकरि आराधना सहित मरण करोतो स्वर्गका महद्धिक. पणा, इन्द्रपणा, अहमिन्द्रपणा पाय पाछे तीर्थकर तथा चक्री आदि होग निर्वाण पावो । मरण समान त्रैलोक्य में दाता नहीं। ऐसे दाताको पाय कर विषयकी वांछा पर कषाय सहित ही रहोगे तो विषय कषायका फल नर्क निगोद है। मरण नामा कल्पवृक्षको बिगाड़ोगे तो ज्ञानादि अक्षय निधान रहित होकर संसार रूप कर्दम में डूब जावोगे। भो भव्य हो जो थे वांछा का मारया हुवा खोटे नीच पुरुषोंका सेवन करो हो, प्रति लोभी भये धन 'वास्ते विषय भोगोंके लिये, हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील परिग्रहमें प्रासनल (८)

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