Book Title: Mrutyu Mahotsav
Author(s): Sadasukh Das, Virendra Prasad Jain
Publisher: Akhil Vishva Jain Mission

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Page 42
________________ 14. Holy men, bearing pains of fasts, • Acquire some fine retribution, Which in end, in sweet fruit lasts At Samadhi or happy death occasion. सत्पुरुष ब्रतों के कष्ट झेल ___जो सु-फल प्राप्त वे करते हैं। सुख साध्य-समाधि के लिये वे फल मरण समय में होते हैं ॥१४॥ अर्थ-सत्पुरुष व्रतोंके बड़े खेदको प्राप्तकर, जिस फलको प्राप्त होय है सो फल मृत्युका अवसरमें थोड़े काल शुभध्यानरूप समाधिमरणकर, सुखसे साधने योग्य होय है ॥ - भावार्थ-जो स्वर्गों में इन्द्रादि पदवी, परंपराय निर्वाणपद, पंच महाव्रतादि घोर तपस्याकर सिद्ध करिये हैं सो पद मृत्युका अवसरमें देह कुटुम्बादि, परिग्रहसू ममता छांडि, भयरहितहुवा, वीतरागता सहित, चार आराधनाका शरण ग्रहणकर, कायरता छाँडि, ज्ञायक, अपने स्वभावको अवलंबनकर, मरण करे तो सहज सिद्ध होय है। तथा स्वर्गलोकमें महद्धिकं देव होय। तहांसे प्राय वड़ा कुलमें उपजि उत्तम संहननादि सामग्री पाय दीक्षा धारण कर अपने रत्नत्रयकी पूर्णताको प्राप्त होय' निर्वाण जाय है ।। प्रनातं शांतिमान मयों न तिर्यक नापि नारकः । धर्मध्यानी पुरोमयों नशनौत्वयरश्वरः ॥१५॥ 15. Peacefully who dies without affliction Can't go to hell or animal race With the performances of religion Bears himself a Gödly face.' *. (१७)

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