Book Title: Mananiya Lekho ka Sankalan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 20
________________ की कल्पना आधुनिक आंतरराष्ट्रीय नेताओं ने की है उसकी स्थापना होगी। वैसी विश्वशांति का प्रचार कई आंतरराष्ट्रीय नेताओं द्वारा हो रहा है। उसमें जगत के शिक्षित माने जाने वाले वर्ग का साथ लिया जा रहा है। जगत को भ्रम में डालने के लिये भारत जैसे शांति के पैगंबर देश का सहकार प्राप्त करने के लिए जनवरी सन् १९४९ में शांति निकेतन में आंतरराष्ट्रीय परिषद आयोजित करने की भी कार्यवाही चल रही है। यह सभी विश्वशांति के सही मार्ग से च्यूत करके, विशेषकर रंगभेद के घर्षण द्वारा मानवजाति को भुलावे में डालकर, तथाकथित विश्वशांति के सूत्र भी गौरांग प्रजा के ही हाथों में सौंप दिये जाये, ऐसी तरकीब की गई है। इस प्रकार की विश्वशांति के पीछे दौड़ने की, इस देश की प्रजा को दौड़ाने की और इसके साथ - साथ एशिया . की अन्य रंगीन प्रजाओं को भी दौड़ाने का व्यवस्था इस संविधान में देखने में आती है। संविधान के उद्देश्य नेहरूजी के जिस प्रस्ताव में जाहिर किये गये उसमें "सच्ची विश्वशांति की स्थापना में भारत विश्व की सहायता ले' ऐसे शब्द नहीं है, बल्कि 'विश्वशांति में सहायता करें" इस आशय के शब्द हैं। ये समानता - न्याय - स्वतंत्रता और विश्वशांति के शब्द भी कितने छलनामय तरीके से संजोये गये हैं? इसका ख्याल बहुत सरलता से नहीं आता। एक जाति, एक धर्म, एक वेशभूषा, एक भाषा, एक सी शिक्षा, एक राज्यतंत्र, एक बैंक, एक सेना, एक प्रजा वगैरह शब्द आंतरराष्ट्रीय नेता प्रचार में रख रहे हैं। उसके पीछे कौन से ध्येय, कौन से आदर्श हैं? तथा उनका परिणाम मात्र श्वेत प्रजा के हित में ही कैसे हैं? इसके विषय में तो एक स्वतंत्र लेख लिखा जा सकता है। इन सभी तत्त्वों को परोक्ष रूप से इस संविधान में इसी प्रजा के एक ऐसे वर्ग के द्वारा शामिल करवा लिया गया है जिसे विदेशी आदर्श की शिक्षा देकर तैयार किया गया था। इस तरह भारत की प्रजा को अन्याय करने का कितना बड़ा षडयंत्र किया गया है? इसका न्याय किससे मांगा जाये? ___ दो सौ वर्षों तक किया गया शासन, इकठ्ठी की गई जानकारियाँ, भारत के नाम पर चलाये गये आदर्श, उन आदर्शों के प्रचार की संस्थायें, सभायें. काउंसिलें, विधान सभायें. संविधान सभायें, कानून वगैरह -वगैरह. न्याय के वास्तविक मापदंड से कितने कोसों दर हैं? इसका विचार करके हृदय कंपित हो जाता है। ___किंतु क्षणिक प्रजाहित की लालच, खोखले आदर्श, बाह्य आडम्बर, भुलावे में डालने वाले वचन, गुप्त और स्वार्थ भरी किंतु बाहर से निष्कपट दिखाई देने वाली विदेशी सहानुभूतियाँ और सहकार से चकाचौंध हो चुके हमारे देशबांधव जो कानूनविद होते हुए भी राजनैतिक दृष्टिबिंदु से अनभिज्ञ होने के कारण इस भूल-भुलैय्या में खींचे चले जा रहे हैं और प्रजा को भी ढकेले चले जा रहे हैं। हे देव! हम कहां जाकर अपनी दुहाई दें? इस संविधान के बारे में कहा जा रहा है कि यह सुधरे हुए राज्यतंत्र का संविधान है। किंतु यह संविधान मात्र राज्यतंत्र तक सीमित संविधान नहीं है। समग्र प्रजा को और प्रजा के समग्र अंगों को आधुनिक आंतरराष्ट्रीय स्वार्थों की पटरी पर चढ़ा देने वाला, प्रजा के जीवन के सभी पहलुओं के प्रभावित करने वाला यह संविधान है। उसमें कई बातें स्पष्ट शब्दों में है, कई बातें गूढ़ शब्दों में है, कितनी ही बातें अभी मात्र प्रतीक स्वरूप में है। सरकारी रेकॉर्ड तथा अन्य कानूनों से ये सूचित बातें आने वाले समय में अपने आप स्पष्ट हो ही जायेंगी और उन विषयों पर प्रजा में इस सा य असंतोष न पैदा हो जाये इसलिये प्रतीकात्मक शब्दों से ही काम चलाया गया है। इस तरह से भी यह संविधान प्रजा को भुलावे में डालता है। कई लोग जानते हैं कि राज्यतंत्र का संविधान है, जबकि उसे बनाने वाले देशी संविधान - कर्ताओं के द्वारा आंतरराष्ट्रीय शाजनयिकों ने समग्र प्रजाजीवन को समाविष्ट कर लेने वाला व अपने ध्येयों और आदर्शों के अनुसरण वाला संविधान बनवा लिया है। “सार्वभौम, स्वतंत्र, प्रजाकीय राज्य संविधान'' वगैरह शब्द तो मात्र छलावा है। (18) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education Interational

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