Book Title: Mananiya Lekho ka Sankalan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 53
________________ के प्रति यदि सच्चा हितभाव होता तो वे हरित क्रांति की भाँति का शीघ्र ही निषेध करते और आसमान छूते कृषिं व्यय . को धरती पर उतारने का प्रयास करतें । बाप-दादाओं से विरासत में मिली भूमि, परम्परा से चलती आ रही बैल जोड़ी और औजार, पिछले वर्ष का सुरक्षित बीज, स्वयं व परिवार का श्रम पुरुषार्थ, घर के पशुओं से प्राप्त मुफ्त गोबर, खाद व निशुल्क बपौती से प्राप्त कुंए के जल के कारण एक जमाने में खेती की "इन पुट कॉस्ट" जीरो थी। जो कुछ उत्पन्न होता था वह पूर्ण विशुद्ध लाभ ही था । कृषि विश्वविद्यालय और कृषि विभाग द्वारा सिखाई गई 'सुधरी खेती' के पुण्य प्रताप से फर्टिलाइजर, जंतुनाशक दवायें, संकर बीज, ट्रेक्टर से लेकर डीजल इंजन तक के खर्च ने किसान की नन्ही कमर पर असह्य बोझ डाल दिया है। वर्ष में सिर्फ एक फसल लेता किसान ५० वर्ष पूर्व जितना सुखी था, उतना सुखी वर्ष में तीन तीन फसल प्राप्त करके बारहों मास बेगार ढोता आज का पंजाब-हरियाणा का किसान भी है अथवा नहीं, यह यक्ष प्रश्न है 1 बम्बई के गुजराती बुद्धिजीवियों में मधु दण्डवते के अनेक मित्र परिचित हैं। बजट सबसीडी की अर्जी पर फाइनलाइजेशन की मोहर लगाई जाये उसके पूर्व क्या उनके मित्र उन्हें सस्ती लोकप्रियता के राजकारण की पीड़ा से बाहर आकर गुट्टी ऊंचे मानव सिद्ध होने का अवसर झडपने के लिये समझ सकेंगे ? सबसीडी का शहद-मीठा जहर पिलाने वाले 'मधु' से कड़वी दवा पीने के दंड देने वाले 'दंडवते' भविष्य के वित्त मंत्रियों के लिये एक उज्जवल आदर्श प्रस्तुत कर पायेंगे। (यह लेख जनवरी १९९१ में लिखा गया) अनुवाद : श्री मनोहर लालजी सिंधी सिरोही (राजस्थान) Jain Education International श्री अतुल शाह (हाल में परमपूज्य मुनिराज श्री हितरुचि विजयजी महाराज साहब) के मूल गुजराती (51) "स्टीसाईअर राजसीडी - धीभुं भीहूं ओर" का हिन्दी अनुवाद संपर्क : विनियोग परिवार बी / २ - १०४, वैभव अपार्टमेन्ट, जांबली गली, बोरीवली (पश्चिम), मुंबई- ९२. टेली ८०२०७४९ / ८०७७७८१ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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