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३१२ * श्री लंबेचू समाजका इतिहास * यादव सब जितने द्वारकामें थे, भस्म भये और दीपायन मुनि भी भस्म हो गये। नरक गये उस समय श्रीकृष्ण वलभद्रने विचारी कि माता-पिता देवकी और वसुदेवको निकाल लावै तो रथमें बैठार कर लाये । तब आकाशवाणी भई कि तुम दोऊ ही बचोगे और कोई नहीं, ऐसी आवाज होते ही द्वारकाका दरवाजा गिरकर वसुदेव देवकी पर पड़ा मर गये। जब श्रीकृष्ण वलदेव निकल आये, आग बुझानेको समुद्रको काटि जल लाये। जल घोके माफिक जलने लगा समुद्र काटि मींचे वलवीर घी लो जले समुद्रका नीर सब उपाय निष्फल गये। जब पुण्यके उदय आया द्वारका इन्द्रकी आज्ञासे कुवेरने बनाई, जब पुण्य क्षीण भया पापका उदय आया भस्म हो गई। यह संसार पाप और पुण्य (धर्म ) का खेला है, इसलिये प्राणी सुख चाहते हैं तो धर्म करो जिससे सुख हो । वर्तमानमें अंगरेजोंनेजब भारत ( हिन्दुस्थान ) में आकर प्रजाका पालन ( अनुशासन ) ठीक किया, तब प्रजा अनुकूल रही और जब स्वार्थ बुद्धिसे प्रजाको तङ्ग किया, प्रजा दुखी हुई। तब प्रजाने अहिंसाधर्मके बलसे सत्याग्रह ठान लिया। अंग्रेज