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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास *
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शाखा हुई गोलसिंगारो की किम्बदन्ती बहुत हैं पर हमने पसारी टोला के मन्दिर में प्रतिमा पर लेख इनका भी इक्ष्वाकु वंश लिखा पाया। इसी प्रकार पनरवती पुरवारोंकी एक प्रतिमा ग्वालियरके श्री जिनेन्द्रभूषण भट्टारकके मन्दिर में उस प्रतिमा पर भी इक्ष्वाकु वंश लिखापाया विक्रम संवत् २६ में श्रीगुप्तिगुप्त मुनि परमार वंशी हुये । विक्रमक नाती (पोता) उन्होंने सहस्र परिवार था पै ऐसा लिखा है सो ऐसा मालूम होता है कि परवार भाई भी परमार या परमारके प्रतिहार वंशमें हो सकते हैं। क्योंकि हम कटक और पुरीमें गये । वहाँ पुरी जगन्नाथपुरी पंडा लोग अपनेको परिहारी लिखते हैं। खोज करें तो खीची चोहानोंकी एक शाखा परमार क्षत्रिय हैं ऐसा हम कई जगह लिख आये हैं जो जत्र वर्तमान समय में हम देखते हैं तो यादववंश ही विस्तरित दिखता है । पहले इन सबके विवाह सन्बन्ध होते थे तब विजातीयतो नहीं रहै किन्तु नीतिसारके अनुसार जब मुनियों में ४ संघ भये देवनन्दि सेन सिंह तबहीं उन्होंने लिखा है जातिसंघटनंपरम् इन जातियोंका पृथक् संगठन हुआ । पडिहारी प्रतिहारीका अपभ्रंश है। कटकमें