Book Title: Kalashamrut 6
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 472
________________ ૪૫૮ મોક્ષ દ્વાર છ કલામૃત ભાગ-૬ अग्य । સમ્યગ્દષ્ટિ જીવ સાધુ છે અને મિથ્યાસૃષ્ટિ જીવ ચોર છે. (દોહરા) जो पुमान परधन हरै, सो अपराधी जो अपनौ धन व्यौहरे, सो धनपति परकी संगति जौ रचै, बंध बढ़ावै जो निज सत्तामैं मगन, सहज मुक्त सो सरवग्य । । १८ ।। सोइ । होइ ।।१९।। દ્રવ્ય અને સત્તાનું સ્વરુપ (દોહરા) उपजै विनसै थिर रहै, यह तो वस्तु जो मरजादा वस्तुकी, सो सत्ता वखान । परवांन।।२०।। છ દ્રવ્યની સત્તાનું સ્વરૂપ (સવૈયા એકત્રીસા) लोकालोक मान एक सत्ता है आकाश दर्व, धर्म दर्व एक सत्ता लोक परमिति है । लोक परवान एक सत्ता है अधर्म दर्व, कालके अनू असंख सत्ता अगनिति है ।। पुद्गल सुद्ध परवानुकी अनंत सत्ता, जीवकी अनंत सत्ता न्यारी न्यारी छिति है। कोऊ सत्ता काहूसौं न मिलि एकमेक होइ, सबै असहाय यौं अनादिहीकी थिति है ।।२१।। છ દ્રવ્યથી જ જગતની ઉત્પત્તિ છે. (સવૈયા એકત્રીસા) एई छहौं दर्व इनहीकौ है जगतजाल,

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