Book Title: Kalashamrut 6
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 474
________________ ४६० કલામૃત ભાગ-૬ જે આત્મસત્તાને જાણતો નથી તે અપરાધી છે. (દોહરા) जाकै घट समता नहीं, ममता मगन सदीव । रमता राम न जानई, सो अपराधी जीव ।।२५।। अपराधी मिथ्यामती, निरदै हिरदै अंध। परकौं मानै आतमा, करै करमको बंध।।२६।। झूठी करनी आचरै, झूठे सुखकी आस । झूठी भगति हिए धरै, झूठे प्रभुको दास ।।२७।। મિથ્યાત્વની વિપરીત વૃત્તિ (સવૈયા એકત્રીસા) माटी भूमि सैलकी सो संपदा बखानै निज, कर्ममैं अमृत जानै ग्यानमैं जहर है। अपनौ न रुप गहै औरहीसौं आपौ कहै, साता तो समाधि जाकै असाता कहर है।। कोपकौ कृपान लिए मान पद पान कियें, मायाकी मरोर हिय लोभकी लहर है। याही भांति चेतन अचेतनकी संगतिसौं, सांचसौं विमुख भयौ झूठमैं बहर है।।२८।। तीन काल अतीत अनागत वरतमान, जगमैं अखंडित प्रवाहको डहर है। तासौं कहै यह मेरौ दिन यह मेरी राति, यह मेरी धरी यह मेरौही पहर है।। खेहको खजानौ जोरै तासौं कहै मेरो गेह, जहां बसै तासौं कहै मेरौही सहर है। याहि भांति चेतन अचेतनकी संगतिसौं, सांचसौ विमुख भयौ झूठमैं बहर है।।२९।।

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