Book Title: Kalashamrut 6
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 486
________________ ४७२ કલશામૃત ભાગ-૬ जिन्हि सुरीति पर रीति न जानी।। माया मगन भरमके भरता। ते जिय भाव करमके करता।।१५।। जे मिथ्यामति तिमिरसौं, लखै न जीव अजीव। तेई भावित करमके, करता होंहि सद्दीव ।।१६।। जे असुद्ध परनति धरै, करें अहं परवांन । ते असुद्ध परिनामके, करता होहिं अजान ।।१७।। આ વિષયમાં શિષ્યનો પ્રશ્ન (દોહરા) शिष्य कहै प्रभु तुम कह्यौ, दुबिधि करमकौ रूप। दरब कर्म पुदगल भई, भावकर्म चिद्रूप।।१८।। करता दरवित करमकौ, जीव न होइ त्रिकाल | अब यह भावित करम तुम, कहौ कौनकी चाल ।।१९।। करता याकौ कौन है, कौन करै फल भोग। कै पुदगल कै आतमा, कै दुहुंको संजोग ?।।२०।। । ये तु स्वभावनियमं कलयन्ति नेम मज्ञानमग्नमहसो बत ते वराकाः । कुर्वन्ति कर्म तत एव हि भावकर्म कर्ता स्वयं भवति चेतन एव नान्यः ।।१०।। कार्यत्वादकृतं न कर्म न च तज्जीवप्रकृत्योर्द्धयो रज्ञायाः प्रकृतेः स्वकार्यफलभुग्भावानषंगात्कृतिः । नैकस्याः प्रकृतेरचित्त्वलसनाज्जीवोऽस्य कर्ता ततो जीवस्यैव च कर्म तच्चिदनुगं ज्ञाता न यत्पुद्गलः ।।११।।

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