Book Title: Jiva aur Karmvichar Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 3
________________ श्रोत्रीतरागाय नमः जीव और कर्मविचार सत्य अनादि है तो मिध्या भी तो मध्य भी दिल हा है। दिवसका साम्राज्य है वहां पर रात्रि होनी हो हो मित्र और शत्रु की लहर प्रसिद्ध हो है । ठीक इसी प्रकार अनुकु ना प्रतिकृता सर्वत्र अनादि कालसे हो रही है । संसार लम्यक्त्व अनादि काल्ते है तो साथमें यह भी मानना पडेगा कि मिध्यात्व भी अनादि कालसे हैं । जैनधर्म अनादिनिधन है तो भी अनादिनिधन है । मिथ्यात्व दो प्रकार है । द्रव्य मिध्यात्व और मात्र मिध्यात्व | भाव मिथ्यात्व को अगृहीत मिध्यात्व या सत्रान मिथ्यात्व करते है। - मिथ्यात्व अनत भेद है तो भी समस्त मिध्यात्वोंका अंतर्भाव पात्र भेदोंमें हो जाना है। " संसारमें जितने मत-ननांतर दीख रहे हैं। जो नए हो चुके हैं अथवा इससे भी अधिक भविष्य में प्रादुर्भाव होंगे उनमें से दि० जैन मत जसे छोड़कर बाकी सब मन (धर्म) द्रव्य मिध्यात्व हैं । thePage Navigation
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