Book Title: Jiva aur Karmvichar Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 9
________________ जीव और कर्म विचार। उद्वेग सुदृढ रूपसे जागृत होता है, कषायोंसे परिणामोंमें साति. शय सचिक्कणता प्राप्त होती है और संतप्तता होती हैं । गर्म लोहा गर्म करनेपर पानीको सर्वतोभावसे आकर्षण घरता है उसी प्रकार आत्मा भी रागद्वेषसे कपाय रूप होता है और कषायोंसे नवीन नवीन कर्म-वर्गणाओंको ग्रहण करता है। ____ पर पदार्थोके निमित्तसे आत्मामें रागद्वेष जागृत होते हैं और उसका द्वार (दरवाजा) मन-वचन-काय हैं, मन-वचन-कायके द्वारा आत्माके प्रदेशोंमें परिस्पंदना होनो है, क्रिया होती है। उसमें भी मुख्य कारण वही आत्माके रागढ़ प भाव हैं उन भावों में कपायोंकी तीव मद आदि विशेष शक्तिसे तीन मंद कर्म-वर्गणाओंमें रस-स्थिति रूप बंध होता है। यद्यपि मन-वचन-कायके द्वारा ही नवीन कर्म-वर्गणाएं आ. त्माके साथ संबंधित होती हैं और उसमें रस और स्थितिका संबंध कपायोंके द्वारा होता है। ___ मन-वचन-कायकी प्राप्ति पूर्व कर्मों के द्वारा होती है । भावार्थमन-वचन-काय यह पूर्व सवधित फार्मोंका फल है। उन मन. पवन-कायके द्वारा कर्मबंध होता है। रागद्ध पसे कर्मबंध । फर्मरंधले मन-वचन-काय । मन-वचनकायले रागद्वप और रागद्वषसे पुनः कर्मबंध । इस प्रकार फर्म संतति अनादिकालसे जीवकी हो रही है । इस संततिसे कर्म और आत्माका संबंध अनादि माना जाता है। प्रथम ऐसा कोई भी समय नहीं था कि जिस समय आत्माPage Navigation
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