Book Title: Jiva aur Karmvichar
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 244
________________ २४२ जीव और कर्म-विचार । " अनुभाग बंधका कुछ विशेष खुलासा । ____ ज्ञानावरणादि कर्मों का जो रस अथवा जो अनुभव अथवा विपाक' जनित फल, अथवा ज्ञानावरणादि कर्म प्रकृतियोंका अपने स्वभावानुरूप कार्य अथवा जिसप्रकार आमके वीजका आमफल और नीवके वीजका नीव फल, इमलीके वोजका इमलीफल होनाउसके स्वभाव गुण-व कार्य प्रकट होना सो अनुभागबन्ध है । * " अनुभागवध दो प्रकार है । एक शुभ दूसरा मशुम (क्योंकि कमोंके कारण भी शुभ और अशुभ रूप दो प्रकार है। जिसको पुण्य और पाप कहते है। अथवा हिंसादि प्रवृत्ति रूप या हिंसादि निवृति रूप अथवा अशुभ चितवन आर्त रौद्र -ध्यान रूप या दश धर्म चितवनरूप) शुभ कर्मों का फल शुभ होता है । लोक्में इसको पुण्य कर्म कहते हैं । शुभ कर्मोका फल अशुभ होता है जिसको पाप कहते हैं। शुभ फोका फल .(पुण्य) सुख-रूप ,अनुभवमें आता हैं अशम काँका फल दुख रूप अनुभवमें आता है। . , परिणामोंमें जैसी कंपायोंका' विशेप या कम (मंदोदय) 'उदय होता है कर्मोके रसमें स्थिति और अनुभागमें विशेपता पैसे २ अधिक होती हैं गोके दूधसे भेड़के दूधमें चिकनता अधिक है। इसी प्रकार कोई आममें खट्टा रस फम और विकारी रस होता है तो कोई आमका रस मीठा बहुत और गुणकारी होता है यह जीवोंके परिणामोंकी शक्ति और वाहाँ निमित्तका कारण है।

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