Book Title: Jiva aur Karmvichar
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 259
________________ जीव और कर्म-धिवार। [२५० परस्त्री हरण करनेफा विचार परना, त्रियोंको व्यभिचारी पना नेका विचार करना, मुनियोंको उपसर्ग या कष्ट देने का विचार करना, धर्मकी पवित्रता नष्ट फरनेका विचार करना, जीवोंको दुख देनेका विचार करना दूसरोंको लूटने मारने और यध फरनेका रिचार करना, मातरौद्र ध्यानके द्वारा भले पुरे विचार करना, विषय पाय और भोग विलासकी वृद्धि के विचार करना, भोग. बिलास और अनुभवानंदके लिये व्यभिचारका विचार करना जिनागमकी आशाका अन्यथा विचार करना जिनागमके मर्थको मनमाने स्वार्थ के लिये मनर्थ रूप अथ परनेका विचार करना इत्यादि सर्व मनके पाप कार्य है। इसीप्रकार मन वचन कायकेद्वारा महान निद्यकार्य करना दूल. रोको षष्ट देना अपने स्वार्थ के लिये कसाई स्वाना खोलना विडियो घर बोलना फतलेआम करना, समथ गो आदिको मारकर धर्म बतलाना दुःखी पीडित मनुप्यों के मारनेमें धर्म पतलाना देवीपर घध करना, युद्धकी भावना करना, चोरी करना धूस लेना धकी वैरिस्टर बनकर न्यायालयमें झूठ बोलना।। मास नाना दारु सेवन करना, शुदके हाथका भोजन पान फरना सो समस्त पापके काम है। मुमुक्षुजन हो! जरा विचार करो। फितने दुख कौके -निमित्तसे सहन किये। नरक, ताडन मारन शूली रोपण आदि. दुखोंको पाया तिथंच योनिके दुःन प्रत्यक्ष हैं। एक समय भी ऐसा व्यतीत नहीं हवा कि जिसमें तुझको दुःखोंके आनेकी

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