Book Title: Jiva aur Karmvichar
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 250
________________ N ' जीव और कर्म विचार । मों को संभाल न कीजाय ना सवैधानि प्रकनियों का कर्मचंध सतत होता रहेगा। आत्मा संस रसे मुंफ कभी नहीं होगा। जो सुख चाहते हो, जो मनुक्त होना चाहते हो, जो कमों का अनुभाग न भागकर की। अविपाक निरा करना चाहते हो तो परिणामांकी संभाल रखा। रागद्वे पसे परिणामों को बचामो मलिन भावों का परिणति ो रक्षा क्रोमिथ्यात्व परिणतिमे दूर रहो सदैव जप तप ध्यान संयम गुप्ते धर्म चारित्र आदि द्वारा अपने परिणामोंको सरल आजार भार्द मय सत्यमय मिलोममयः बनायो । बस यही अनुभाग बंध जाननेका फल है। चाहे पुण्य रूप अनुमाग हो चाहे पाप रूर हो परन्तु कर्मों का अनुभाग फिलो प्रकार भी उत्तम नहीं है। प्रदेशबंध प्रदेश बंधका स्वरूप खास विचार करने योग्य है। लाकाकाशमें मवें व कामेण वर्गणार्य खचा खच भरी हुई हैं। आकाशका ऐसाकोई प्रदेश नहीं है कि जिसमें कार्मण वर्गणाका अस्तित्व न हो। वे पुद्गल परमाणु अनंतानंत है। अत्यंत सूक्षन है अतीन्द्रिय हैं। उन परमाणुओं को आत्मा समय समयमें ग्रहण करता है जिस समय आत्माके साथ उनका सवैध हो जाता है तब उनमें मानव रणादि कर्म प्रतिके योग्य परिणमन' होनेकी शक्ति उत्पन्न हो जाती है।

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