Book Title: Jinkrupachandrasurishwar Charitram
Author(s): Jaysagarsuri
Publisher: Jaysagarsuri

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Page 36
________________ SinMahavir.jan AradhanaKendra www.kobatirtm.org Acharys Shun Kaliassagaran Gyanmandi RANCCORREARS सहपः ॥ ११६॥ (मालिनी)-नव-शर-नव-भूमीमानसम्बत्सरेऽसौ, यकृत परमभक्त्या पूर्णिमापा हि चैश्याम । विमलगिरिसुयात्रा प्राप्तहर्षप्रकर्षः, तदनु स हि महवाग्राम-दाठा-तलाजाः ॥ ११७ ॥ (उपजातिः)-आगत्य सर्वत्र विधाय यात्रा, श्रीपादलिप्तं पुनराजगाम । प्रावदचतुर्मासमिहैव कृत्वा, व्याख्यानपीयूषमसौ ववर्ष ॥ ११८॥ (युग्मम् ) ततो विहृत्याऽगमदुजयन्ताऽ-चलं महात्मा शमताऽम्बुराशिः । विलोक्य तीर्थेशमजहषीच, वनस्थलीमापदनन्तरं सः ॥ ११९ ।। तत्रत्ययात्रामयमुञ्चभक्तथा, विधाय चाऽऽर्छरमांगरोलम् । प्रणम्य संस्तुत्य च तीर्थनाथ-मायिष्ट वेरावलपत्तनं सः ।।१२०॥ ददर्श तीर्थेश्वरमाप मोदं, प्रभासयुकपट्टणमाजगाम। विधाय यात्रामयमैबलेचं, ततः समागावर-पोरबन्दरम् ॥ १२१ ॥ तीर्थेशसन्दर्शनतः स्वकार्य, पूत्वा बगाद् भाणवडं पुरं सः। जिनेन्द्रबिम्ब प्रबिलोक्य तत्र, प्रामोमुदीभावितभावनाभिः ॥१२२।। (प्रियंवदा)-अथ स जामनगर समागतः, प्रशम भूषण-सुशोभिताऽऽत्मकः । प्रजित-मोहमदनादिशात्रवः प्रभुवरोऽकृत जिनेशदर्शनम् ॥ १२३ ।। (रथोद्धता)-पोरबन्दरपुरीमसो पुनः, प्राप्तवान् प्रचुरशिष्य-सेवितः । आदृतः सकलपौरवासिभि,-र्भानुमानिव सुतेजसा ज्वलन् ॥१२४ ।। व्योम-तर्क-न-चन्द्रसम्मिते, वत्सरे न्यवसदन साऽऽग्रहः । प्राकृषि प्रथितविद्यकः सको, देशनाऽमृतमपाययञ्जनान् ॥ १२५ ॥ (उपजातिः)-सूत्र च जीवाभिगमाऽभिधानं, जैनानशेषानतिभक्तिभाजः । अश्रावयन्मेष-रवस्य जेत्रा, वेण सूत्रार्थपरिस्फुटेन ।। १२६ ।। सदैव पर्यषण-पर्ववद्धि, प्रावर्तताऽनेकमहोत्सवोत्र । प्रभावना-दीनजनाऽऽदिदान-तपःप्रवृद्धिमहती बभूव ।। १२७॥ गते चतुर्मास इतो विहृत्य, सिद्धाऽचलं रैवतकाऽचलं च । गत्वा सुखेनाऽकृत तत्र यात्रा-मगानवाग्राममितो विहृत्य ॥१२८॥ मही KASAMACACADAV For Private And Personal use only

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