Book Title: Jinkrupachandrasurishwar Charitram
Author(s): Jaysagarsuri
Publisher: Jaysagarsuri

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Page 59
________________ SinMahavir.jan AradhanaKendra www.kobatirtm.org Acharys su kalis Gyanmar तृतीयः सर्गः। श्रीजिनकृपाचन्द्र सूरिचरित्रम् ॥ ७९ ॥ लेयं प्रभुमत्र दृष्ट्वा, देशाइनाम्नी नगरीमयासीत् ॥ १४६ ॥ (वंशस्थवृत्तम् )-महामहेनाऽत्र पुरं प्रवेशितः, सुदेशनां सत्वरबोधदायिनीम् । सनातनाऽसीमसुखाऽनुभाचिनी, ददौ च संसारसमुद्रतारिणीम् ॥ १४७ ।। (पृथ्वी)-कणोदनगरीमियाय सकलाऽऽर्तिहारी गुरुः, समस्त-पुरवासिभिः प्रकृतचारु-नानोत्सवैः । प्रवेशमकरोदसौ सकलशिष्यवर्गः समं, स्वदाच वरदेशनामखिलपापनोदक्षमाम् ॥ १४८ ॥ (मालिनी)-तखतगढमयासीद्वादिवृन्दाष्टवीषु, सततविहरमाणः केसरी विश्वपूज्य: । जन-महितपदाऽकजः सत्कृतः सर्वपौर-रददत कमनीयं शुद्धधर्मोपदेशम् ॥ १४९ ।। (तोटकम् )-बदनावरपत्चनमैयरसौ, नगरीजनसत्कृत ईब्यवरः। उपदेशमदत्त सतामघदं, भुवि भुक्तिविमुक्तिददं समितौ ।। १५०॥ (प्रमुदितवदना )-वडनगरमथाऽऽययौ सूरिराद्, पुरजनकृतसत्कृति पेदिवान् । वृजिनततिविनाशिनी देशना-मदित सदसि संसृतेमोचिनीम् ॥ १५१।। (भुजङ्गप्रयातम् ) ततः सूरिराडाययौ खाचरोद, पुरं प्राविशञ्चाऽतिचारूत्सवस्तत् । जनानार्हताञ्छुद्धधर्म यतात्मा, चचक्षे महात्मा सदा शान्तमूर्तिः ॥ १५२ ।। (इन्द्रवना)-ओलीमकार्षीदिह माधवीं स, धर्माद्यनुष्ठानमभूदपूर्वम् । श्रद्धालुसुश्रावकवृन्दजुष्ट-पादारविन्दद्वय उत्तमौजाः ॥ १५३॥ (उपजातिः)-आगच्छदस्मात्स हि सेमलीया-पुरं प्रधानं सकलेश्च पौर: । प्रवेशितश्चारुमहामहेन, व्याचष्ट धर्म भवभीतिवारम् ।। १५४ ॥ स नामलीनाम पुरं ततोऽगात् , उच्चैः प्रवेशोत्सवतः प्रविश्य । सोधिबीजप्रदधर्ममत्र, प्रोपादिशत्पर्षदि संघमेषः ।। १५५ ॥ (इन्द्रवमा)-पञ्चेडमागाविहरंस्ततोऽयं, चक्रुः प्रवेशोत्सवमस्य पौराः । श्रुत्वोपदेशं सुगुरोरमुष्य, धर्म च सर्वे द्रद्धिमानमापुः ॥ १५६ ।। (उपजातिः)-ततः सलानानगरीमियाय, नोनयमानः पुरवासिलोकैः । राजानमत्रत्यमबोधयञ्च, ॥ ७९ ॥ For Private And Personal use only

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