Book Title: Jin Darshan Chovisi Author(s): Prakrit Bharti Academy Publisher: Prakrit Bharti Academy View full book textPage 5
________________ प्राकृत भारती अकादमी की कई वर्षों से यह उत्कट अभिलाषा रही कि जयपुरी शैली की इस कलात्मक चौवीसी का पुनर्मुद्रण अवश्य करवाया जाए। पं0 भगवानदासजी के देहावसान के पश्चात इस चौवीसी के चित्रों एवं ब्लाकों को खोजने का पूर्ण प्रयास भी किया, किन्तु इसके ओरछोर का पता न लग सका। इसी बीच हमने नाथद्वारा और कलकत्ता के प्रसिद्ध चित्रकारों द्वारा एकएक नवीन चित्र भी बनवाने का प्रयत्न किया किन्तु वे सन्तुष्टिकारक न बन सके। यह संयोग ही था कि 4 वर्ष पूर्व साहित्य मंदिर, पालीताणा में विराजमान प्रसिद्ध कला मर्मज्ञ पूज्य आचार्य श्री विजय यशोदेवसूरिजी म. से मिलना हुआ। वार्ता के दौरान इस चौवीसी के पुनर्मुद्रण प्रसंग पर उनसे ज्ञात हुआ कि चौवीसी के चित्र 50 वर्ष पूर्व ही पं0 भगवानदासजी जैन से उन्होंने खरीद लिये थे, वे उनके पास सुरक्षित है। यह जानकर हमें हार्दिक प्रसन्नता हुई। प्राकृत भारती की प्रबंध समिति में इसके पुनर्मुद्रण की सहमति प्राप्त कर हमने पूज्य आचार्यश्री से पत्राचार द्वारा विनम्र अनुरोध किया कि 'प्राकृत भारती उक्त चौवीसी छपवाना चाहती है अतःचौवीसी के चित्र हमें भिजवाने की कृपा करावें, हम ब्लाक बनवाकर चित्र वापस लौटा देंगे अथवा चित्रों की ट्रान्सपरेंसी भिजवा दें। हमारे सविनय निवेदन को उदारमना कलाप्रेमी आचार्य श्री विजययशोदेवसूरिजी म0 ने सहर्ष स्वीकार किया और प्रसन्नतापूर्वक ट्रान्सपरेन्सी भिजवादी और प्रकाशन की स्वीकृति प्रदान की, इतना ही नहीं अपितु प्रकाशनार्थ आशीर्वादात्मक दो शब्द भी लिखकर भिजवा दिये। अतएव हम पूज्य आचार्यश्री के अत्यन्त आभारी हैं कि उनकी विशाल सहृदयता, सौमनस्यता के फलस्वरूप ही इस दुर्लभ चौवीसी का 57 वर्ष पश्चात पुनर्मुद्रण संभव हो सका।Page Navigation
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